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मकड़ी अपने ही बनाए…जाल में मरती है!

अपन तो कहेंगे
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मकड़ी अपने ही बनाए...जाल में मरती है!
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नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास, दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की हार खुद को भगवान समझकर व्यक्ति केंद्रित राजनीति करने वालों के लिए एक सबक है। केजरीवाल का अहंकार ही उनकी हार का सबसे अहम कारण बना।  वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति भी इससे परे नहीं। लेकिन उनके पीछे आरएसएस जैसा वो मजबूत संगठन भी है जो समय समय पर इनकी लगाम भी खींचता है और जरुरत पड़े तो ढील भी देता है। जबकि केजरीवाल ने 10 से 12 वर्षों की अपनी राजनीति में खुद को सर्वेसवा माना भी और मनवाया भी। यही नहीं केजरीवाल खुद और अपनी पार्टी को भी कांग्रेस से बड़ा समझने की भूलकर बैठे। तभी तो उन्होंने शुरूआत से ही देशभर में ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि वही मोदी का विकल्प हैं और वो इसी के इरर्गिद अपने सियासी जाल भी बुनते रहे और चाल भी चलते रहे। लेकिन शायद उन्हें ये पता नहीं या फिर उनके ओवर कॉन्फिडेंस ने उन्हें ये सोचने का मौका ही नहीं दिया कि इस देश की जनता ने न जाने ऐसे कितने ही नेताओं और उनकी राजनैतिक सोच की हवा बनाई भी और समय आने पर हवा निकाल भी दी। इसीलिए कॉलम अपन तो कहेंगे में इस बार मेरे विचार का शीर्षक है। मकड़ी अपने ही बनाए…जाल में मरती है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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