

नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास, दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की हार खुद को भगवान समझकर व्यक्ति केंद्रित राजनीति करने वालों के लिए एक सबक है। केजरीवाल का अहंकार ही उनकी हार का सबसे अहम कारण बना। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति भी इससे परे नहीं। लेकिन उनके पीछे आरएसएस जैसा वो मजबूत संगठन भी है जो समय समय पर इनकी लगाम भी खींचता है और जरुरत पड़े तो ढील भी देता है। जबकि केजरीवाल ने 10 से 12 वर्षों की अपनी राजनीति में खुद को सर्वेसवा माना भी और मनवाया भी। यही नहीं केजरीवाल खुद और अपनी पार्टी को भी कांग्रेस से बड़ा समझने की भूलकर बैठे। तभी तो उन्होंने शुरूआत से ही देशभर में ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि वही मोदी का विकल्प हैं और वो इसी के इरर्गिद अपने सियासी जाल भी बुनते रहे और चाल भी चलते रहे। लेकिन शायद उन्हें ये पता नहीं या फिर उनके ओवर कॉन्फिडेंस ने उन्हें ये सोचने का मौका ही नहीं दिया कि इस देश की जनता ने न जाने ऐसे कितने ही नेताओं और उनकी राजनैतिक सोच की हवा बनाई भी और समय आने पर हवा निकाल भी दी। इसीलिए कॉलम अपन तो कहेंगे में इस बार मेरे विचार का शीर्षक है। मकड़ी अपने ही बनाए…जाल में मरती है!