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जिन्ना का सपना पूरा करना या भारत के टुकड़े?

अपन तो कहेंगे
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जिन्ना का सपना पूरा करना या भारत के टुकड़े?
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नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास, इन दिनों भारत में मंदिर-मस्जिद और हिंदू मुसलमान के मुद्दे ने समाज को जैसे दो किनारों पर ला खड़ा कर दिया हो और अब हिंदू जिसतरह मुसलमान को किसी भी सूरत में बर्दाशत करने को तैयार नहीं है उसकी कल्पना भर से दिल दहल जाता है कि क्या हम हिंदूओं में 1947 से पहले वाले  जिन्ना का जिन्न प्रवेश कर गया है। कॉलम अपन तो कहेंगे में इस बार। हम हिंदू चाहते क्या है इसपर एक सीरीज लेकर आए हैं और पहले सीरीज में मेरे विचार का शीर्षक है

जिन्ना का सपना पूरा

करना या भारत के टुकड़े?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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