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नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास, हिंदू कभी भी इस्लाम, यहूदी, ईसाई की तरह न हो सकता है और न कर सकता है। क्योंकि हिंदू सोच और उसकी प्रकृति बिल्कुल अलग तासीर लिए हुए है। वो सच को भी सीधे नहीं घुमाफिराकर कहने में यकीन करता है इसलिए नतीजा हमेशा यानी आज भी अतीत की तरह ही। इसलिए कॉलम अपन तो कहेंगे में हम हिंदू चाहते क्या हैं? सीरीज के दूसरे भाग का शीर्षक है।समस्या मुसलमान से नहीं हिंदू ‘निरुद्देश्यता’ से है !