पिछले करीब दो महीने से कहा जा रहा था कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती अपने जन्मदिन पर यानी 15 जनवरी को कोई बड़ी घोषणा करेंगी। लेकिन उन्होंने कोई बड़ी घोषणा नहीं की। अपने जन्मदिन पर प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने पहले कई बार कही गई अपनी बात को दोहराया कि वे अकेले चुनाव लड़ेंगी और कोई तालमेल नहीं करेंगी। लेकिन क्या सचमुच ऐसा होगा? एक सवाल यह भी है कि क्या विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने दक्षिण भारत के एक कद्दावर दलित नेता को अध्यक्ष बना कर परोक्ष रूप से एक चेहरा पेश कर दिया है इसलिए मायावती नाराज हो गई हैं?
गौरतलब है कि मायावती काफी समय से कह रही हैं कि वे अकेले लड़ेंगी क्योंकि गठबंधन का फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। हालांकि उनकी यह बात तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। फिर भी उनके अकेले लड़ने की घोषणा से बसपा के सांसद दूसरी पार्टियों में अपनी जगह देखने लगे हैं। उनको पता है कि अकेले लड़ने पर फिर बसपा का कोई उम्मीदवार नहीं जीतेगा। बसपा 2014 में अकेले लड़ी थी। तब वह बड़ी पार्टी थी और उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटे उसे सिर्फ दो साल हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव में उनको 26 फीसदी वोट और 80 सीटें मिली थीं। इसलिए 2014 का चुनाव उन्होंने पूरी ताकत से लड़ा था। उनकी पार्टी को 20 फीसदी वोट मिले लेकिन सीट एक भी नहीं मिली। उसके बाद दो विधानसभा चुनावों में उनका वोट घटते घटते 13 फीसदी पर आ गया है और उनका सिर्फ एक विधायक जीता है। इसलिए इस बार अकेले लड़ने पर बसपा एक भी सीट नहीं जीतेगी और वोट भी बहुत कम मिलेंगे।
तभी उनकी पार्टी के 10 में से नौ लोकसभा सांसद दूसरी पार्टी से लड़ने की तैयारी कर चुके हैं। उनकी बात दूसरी पार्टियों में हो गई है। जानकार सूत्रों के मुताबिक अंबेडकरनगर के सांसद रितेश पांडेय, गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी, सहारपुर के हफीजुर्रहमान की बात समाजवादी पार्टी से चल रही है तो अमरोहा के सांसद कुंवर दानिश अली कांग्रेस की टिकट पर लड़ने की तैयारी में हैं। वैसे उनको बसपा से निकाला जा चुका है। बिजनौर के संसद मलूक नागर भाजपा में जा सकते हैं। उनके दो यादव सांसद भी अपनी सीट बचाने की चिंता में हैं। ले-देकर नगीना सीट पर उनके सांसद गिरीश चंद्र अभी फैसला नहीं कर पाए हैं।
तभी सवाल है कि मायावती क्या करेंगी? क्या वे ऐसे ही अकेले लड़ कर पार्टी को समाप्त कर लेंगी या अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाने के बाद उनको पार्टी ऐसी स्थित में सौंपेंगी कि वे उसे आगे ले जा सकें? जानकार सूत्रों का कहना है कि मायावती थोड़ा और समय बीतने का इंतजार कर रही हैं। इस बीच उनकी बात हर पार्टी के साथ चल रही है। कांग्रेस से लेकर बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी के साथ बात होने की खबर है। बताया जा रहा है कि वे कांग्रेस से पूरे देश में सीट मांग रही हैं। हालांकि खड़गे को नेता बनाने के बाद मायावती का चेहरा पेश किए जाने की संभावना नहीं है। फिर भी अगर वे गठबंधन में शामिल होती हैं तो उनके साथ साथ विपक्ष को भी फायदा होगा। लेकिन इसके लिए पहले अखिलेश यादव को तैयार करना होगा। कई जानकार यह भी दावा कर रहे हैं कि मार्च में चुनाव की घोषणा के समय विपक्ष धमाका करेगा।