कांग्रेस के आला नेता किस कदर गफलत में हैं या इसका अंदाजा मिलिंद देवड़ा प्रकरण से मिलता है। अभी एक महीना भी नहीं हुआ है कि मल्लिकार्जुन खड़गे की टीम में मिलिंद को संयुक्त कोषाध्यक्ष बनाया गया और अब वे पार्टी छोड़ कर चले गए। उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और शिव सेना में शामिल हो गए। उन्होंने उस दिन कांग्रेस छोड़ी, जिस दिन राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू हो रही थी। तभी जयराम रमेश ने कहा कि मिलिंद के पार्टी छोड़ने की टाइमिंग प्रधानमंत्री मोदी ने तय की। सवाल है कि किसी ने तय की हो उससे क्या फर्क पड़ जाएगा? यह तो कांग्रेस को सोचना चाहिए कि क्यों मिलिंद देवड़ा जैसा प्रतिबद्ध व्यक्ति पार्टी छोड़ कर गया और कैसे पार्टी के तमाम बड़े छोटे नेताओं को इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली?
बहरहाल, देवड़ा की कहानी ज्योतिरादित्य सिंधिया या दूसरे युवा नेताओं से अलग है। देवड़ा ने लंबा इंतजार करने के बाद पार्टी छोड़ी है। सिंधिया तो 2019 के मई में लोकसभा चुनाव हारे और 10 महीने बाद मार्च 2020 में भाजपा के साथ चले गए। मिलिंद ने 10 साल इंतजार किया। वे 2014 में लोकसभा का चुनाव हारे थे। पांच साल बाद फिर 2019 में हारे। उसके बाद भी वे पार्टी में बने रहे और पार्टी के लिए काम करते रहते। इस दौरान कांग्रेस सरकार में भी रही। शिव सेना और एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी की सरकार रही। इन 10 वर्षों में महाराष्ट्र कांग्रेस के चार राज्यसभा सांसद चुने गए। उत्तर प्रदेश के इमरान प्रतापगढ़ी तक को महाराष्ट्र से राज्यसभा में भेजा गया और बिहार की रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में गईं लेकिन मिलिंद के नाम पर विचार नहीं हुआ। कांग्रेस नेताओं को यह तथ्य पता है कि 2014 के बाद से मिलिंद देवड़ा को तोड़ने के लिए दूसरी पार्टियों से राज्यसभा के कई प्रस्ताव मिले। लेकिन वे अपने पिता के सम्मान में कांग्रेस में बने रहे। जानकार सूत्रों का कहना है कि इस बार दक्षिण मुंबई की उनकी लोकसभा सीट उद्धव ठाकरे को मिल रही है इसलिए उन्होंने राज्यसभा की मांग की थी। कांग्रेस को राज्यसभा की एक सीट मिलेगी और दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस को सीटें मिल रही हैं लेकिन कांग्रेस ने मना कर दिया। तभी वे पार्टी छोड़ कर गए और अब एकनाथ शिंदे उनको राज्यसभा में भेजेंगे।