कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी पूरे देश में घूम घूम कर जाति गणना और आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा उठा रहे हैं। अनके अंदर पिछड़ी जातियों के प्रति जो प्रेम जगा है वह अभूतपूर्व है। लेकिन दिलचस्प यह है कि पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की शुरुआत करने वाले और सामाजिक न्याय के बड़े आईकॉन के तौर पर स्थापित पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पुण्यतिथि पर राहुल गांधी ने उनको श्रद्धांजलि देने की जरूरत नहीं समझी। इतना ही नहीं वीपी सिंह की पुण्यतिथि के मौके पर 27 नवंबर को तमिलनाडु की सरकार ने उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया तो उस कार्यक्रम में भी प्रदेश कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हुए।
ध्यान रहे तमिलनाडु की डीएमके सरकार में कांग्रेस भी शामिल है। निश्चित रूप से मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेताओं को बुलाया होगा। लेकिन कांग्रेस का कोई नेता इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस कार्यक्रम में शामिल हुए। दिवंगत वीपी सिंह की पत्नी सीता सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इस मौके पर मौजूद रहे। सोचें, कांग्रेस के इस विरोधाभास पर! आज राहुल गांधी को समझ में आ रहा है कि पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय हुआ है और उनको आबादी के अनुपात में हक मिलना चाहिए। इसलिए वे जाति गणना कराने और आरक्षण की सीमा बढ़ाने की पैरवी कर रहे हैं। लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करके करीब 52 फीसदी पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी आरक्षण देने वाले वीपी सिंह को न याद करेंगे और न उनसे जुड़े कार्यक्रम में शामिल होंगे!
असल में कांग्रेस के नेता अब भी इस ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाए हैं कि वीपी सिंह ने राजीव गांधी की चार सौ से ज्यादा सांसदों वाली प्रचंड बहुमत की सरकार से इस्तीफा दिया था और उसके बाद 1989 के चुनाव में कांग्रेस को हरा कर सत्ता से बाहर कर दिया था। चुनावी हार से ज्यादा कांग्रेस नेताओं को इस बात की नाराजगी है कि वीपी सिंह की वजह से राहुल गांधी की मिस्टर क्लीन की छवि प्रभावित हुई। राहुल गांधी के ऊपर बोफोर्स घोटाले के आरोप मीडिया की खबरों से लगे थे लेकिन सबको पता है कि वीपी सिंह ने ही उसे चुनावी मुद्दा बनाया।
वीपी सिंह अपनी चुनावी सभाओं में कागज की एक परची दिखाते थे और कहते थे कि इस पर राजीव गांधी के स्विस बैंक के खाते का नंबर है, जहां बोफोर्स घोटाले का पैसा जमा है और उनकी सरकार बनी तो वे यह पैसा वापस लाएंगे। लेकिन सबको पता है कि चुनाव के बाद वीपी सिंह ने किसी खाते का खुलासा नहीं किया और न कोई पैसा वापस आया। तभी राजनीतिक नाराजगी के साथ साथ कांग्रेस नेताओं को और खास कर पार्टी का नेतृत्व कर रहे गांधी परिवार को वीपी सिंह से निजी नाराजगी भी है। यही कारण है कि ओबीसी उत्थान की तमाम बातों के बावजूद राहुल गांधी एक बार भी उनका नाम नहीं लेते हैं। कांग्रेस को इस बात की भी चिंता रहती है कि वीपी सिंह का जिक्र करने से यह सवाल उठेगा कि जब मंडल आयोग की रिपोर्ट आ गई थी तो कांग्रेस की सरकारों ने उसे एक दशक तक क्यों लटकाए रखा था।