एक समय था, जब शिव सेना में बाल ठाकरे के बाद राज ठाकरे का नाम लिया जाता था। उद्धव ठाकरे सक्रिय राजनीति से दूर थे। अपने पिता की तरह कैरिकेचर बनाने और फोटोग्राफी में व्यस्त रहते थे। लेकिन बाल ठाकरे ने विरासत अपने बेटे को ही सौंपी और उस समय भावना में बह कर राज ठाकरे पार्टी से बाहर निकल गए। उसके बाद करीब 15 साल से वे राजनीतिक बियाबान में भटक रहे हैं। एक बार फिर महाराष्ट्र में चाचा भतीजे का विवाद चल रहा है। शरद पवार के बाद एनसीपी में अजित पवार का नाम लिया जाता है। लेकिन सबको पता है कि शरद पवार अपनी विरासत बेटी सुप्रिया सुले को ही सौंपेंगे।
इस बात को अजित पवार भी समझ रहे हैं लेकिन वे राज ठाकरे वाली गलती नहीं दोहराएंगे। उनको पता है कि उनके साथ एनसीपी के कुछ नेता तो जा सकते हैं लेकिन वोट उधर ही रहेगा, जिधर शरद पवार रहेंगे। दूसरे उनको यह भी पता है कि बगावत करके पार्टी और परिवार की बेहिसाब संपत्ति भी हाथ से निकलेगी। लेकिन दूसरी ओर उनके सामने भाजपा को खुश रखने की भी चुनौती है। उनको भ्रष्टाचार के दो बड़े मामलों में राहत मिली है। सो, वे खुद भाजपा में जाने की बजाय अपने करीबी लोगों के भाजपा में शामिल होने का रास्ता बनवा रहे हैं। वे परोक्ष रूप से भाजपा की मदद कर रहे हैं। पिछले दिनों उनके एक बहुत करीबी पूर्व विधायक अशोक टेकवाडे भाजपा में शामिल हो गए। टेकवाडे पुरंदर सीट से विधायक रहे हैं। यह सीट बारामती लोकसभा के तहत आती है, जहां से सुप्रिया सुले सांसद हैं। अगले लोकसभा चुनाव में बारामती में सुप्रिया को हराने की भाजपा की योजना का यह हिस्सा है।