बहुजन समाज पार्टी के सांसद चिंता में हैं। जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे वैसे उनकी चिंता बढ़ रही है। मायावती इस जिद पर अड़ी हैं कि वे अकेले चुनाव लड़ेंगी। उनके अकेले चुनाव लड़ने पर क्या होगा, इसका अंदाजा उनके सभी सांसदों को है। उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था और उनकी पार्टी का एक भी सांसद नहीं जीता था, जबकि वोट 20 फीसदी के करीब मिले थे। अगले चुनाव में यानी 2019 में उन्होंने समाजवादी पार्टी से तालमेल किया तो उनके 10 सांसद जीत गए। समाजवादी पार्टी पांच की पांच सीटों पर रह गई, लेकिन मायावती के सांसदों की संख्या जीरो से 20 हो गई।
सोचें, 2014 में मायावती को उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हुए सिर्फ दो साल हुए थे और उनका वोट पूरी तरह से उनके साथ था तब त्रिकोणात्मक मुकाबले में उनको एक भी सीट नहीं मिली थी। उनको राज्य की सत्ता से बाहर हुए 11 साल हो गए हैं और उनका वोट धीरे धीरे उनका साथ छोड़ता गया है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में दिखा। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उनको सिर्फ 12.88 फीसदी वोट मिला और पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई। ऐसे समय में अगर वे लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने जाती हैं तो सबको पता है कि नतीजे 2014 से भी खराब होंगे। सीटें तो नहीं मिलेंगी वोट भी 10 फीसदी से नीचे जा सकता है।
तभी उनकी पार्टी के सांसद बेचैन हैं। वे चाहते हैं कि मायावती विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का हिस्सा बन कर चुनाव लड़ें। अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो ज्यादातर सांसद पाला बदलने को तैयार बैठे हैं। अमरोहा से पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली ने मायावती से गठबंधन में शामिल होने की अपील की है। उनको पता है कि पिछली बार समाजवादी से तालमेल होने की वजह से ही वे जीते थे और अगर मायावती अकेले लड़ीं तो वे नहीं जीत सकते हैं। उनसे पहले बसपा के एक सांसद रितेश पांडेय ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। उनके सपा में जाने की चर्चा है।
यह बसपा के सिर्फ दो सांसदों की कहानी नहीं है। पिछली बार बसपा की टिकट से लोकसभा का चुनाव लड़े पूर्व सांसद कुशल तिवारी पार्टी छोड़ कर सपा में जा चुके हैं। अभी कई सांसद, कई पूर्व सांसद और बसपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके कई नेता दूसरी पार्टियों में जाने की तैयारी में हैं। बताया जा रहा है मायावती की पार्टी के कम से कम आठ सांसद ऐसे हैं, जो तालमेल नहीं होने की स्थिति में दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ने जा सकते हैं। ऐसे कई सांसद भाजपा और समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती लगभग निष्क्रिय रहीं, जिसका नतीजा यह हुआ कि उनके वोट का एक बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ। कहा जा रहा है कि वे किसी तरह के दबाव में हैं, जिसकी वजह से भाजपा को मजबूत चुनौती देने की रणनीति में विपक्ष के साथ शामिल नहीं हो रही हैं। उन्हें किसी बाहरी दबाव में निष्क्रिय रहना है या और अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए कदम उठाना है, इसका फैसला उनको करना है।