पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के बारे में कहा जाता है कि वे भाजपा की खूब आलोचना करते हं लेकिन अंत में वोट भाजपा को ही देते हैं। उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों और बिहार के भूमिहारों के बारे में यही कहा जाता है। उसी तरह कर्नाटक में लिंगायत हैं। पिछले दो दशक से ज्यादा समय से उनका वोट भाजपा को ही जाता है। बीएस येदियुरप्पा के उभार के बाद से लिंगायत भाजपा को वोट देते हैं। चाहे पांच साल कितनी भी आलोचना करें और लिंगायत समुदाय का कोई भी नेता किसी भी दल में चला जाए लेकिन अंत में वोट भाजपा को गिरेगा। हर आश्रम और मठ से भाजपा को वोट देने का मैसेज जाता है।
तभी ऐसा लग रहा है कि भाजपा कर्नाटक में लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ने को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार को भाजपा ने टिकट नहीं दी और वे कांग्रेस में चले गए। पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी की भी टिकट काट कर भाजपा ने उनको कांग्रेस में जाने दिया। इन दोनों नेताओं को लेकर दावा किया जा रहा है कि ये 20 से 25 विधानसभा सीटों को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन भाजपा परवाह नहीं कर रही है। एक तो उसे बीएस येदियुरप्पा का भरोसा है कि उनके रहते भाजपा को किसी और लिंगायत नेता की जरूरत नहीं है। दूसरे, यह भी लग रहा है कि पारंपरिक रूप से भाजपा को वोट देने वाला लिंगायत समुदाय नरेंद्र मोदी की करिश्माई राजनीति के दौर में भाजपा को नहीं छोड़ेगा। हो सकता है कि शेट्टार और सावदी जीत जाएं या एकाध सीटों पर कोई और लिंगायत उम्मीदवार कांग्रेस या जेडीएस से जीत जाए लेकिन एकमुश्त लिंगायत वोट भाजपा को छोड़ कर नहीं जाएगा।