यह लाख टके का सवाल है। पार्टी की ओर से लगातार मीडिया में यह खबर दी जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने के बाद से पार्टी पसमांदा और वोहरा मुसलमानों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है और इसके लिए बड़ी योजना बनाई गई है। ध्यान रहे प्रधानमंत्री मोदी ने हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में और उसके बाद नई दिल्ली की कार्यकारिणी बैठक में पार्टी नेताओं से कहा कि वे अल्पसंख्यकों में पिछड़े पसमांदा मुसलमानों के साथ जुड़ने की कोशिश करें और उन्हें पार्टी के कामकाज के बारे में बताएं। इसके बाद खबर आई कि पार्टी ने 60 लोकसभा सीटों की पहचान की है, जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ज्यादा और 60 फीसदी तक है। इन सीटों पर भाजपा के नेता पिछड़े मुसलमानों से जुड़ने की कोशिश करेंगे।
अब सवाल है कि मुसलमानों से जुड़ने का क्या मतलब है? क्या पार्टी किसी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव में उतारेगी? ध्यान रहे लोकसभा में भाजपा का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। राज्यसभा में तीन मुस्लिम सांसद- मुख्तार अब्बास नकवी, एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम, पिछले साल तीनों का कार्याकाल समाप्त हो गया। किसी को फिर से उच्च सदन मे नहीं भेजा गया। पिछले दिनों जम्मू कश्मीर की आरक्षित जनजाति के एक मुस्लिम नेता को राज्यसभा में मनोनीत किया गया। सो, राज्यसभा में एक मुस्लिम सांसद है और लोकसभा में कोई नहीं है। केंद्र की सरकार में नकवी इकलौते मुस्लिम मंत्री थे, अब कोई नहीं है। तभी यह सवाल है कि मुसलमानों तक पहुंच बनाने का क्या मतलब हुआ? पार्टी ने पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों की 60 सीटों की पहचान की है। अगर अभी से इनमें से कुछ सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की बात हो तब तो उस समुदाय के लोगों में कोई आकर्षण बनेगा अन्यथा इस पहुंच बनाने की कवायद का कोई मतलब नहीं है।