विधानसभा चुनाव से पहले नगालैंड बिना विपक्ष के था। राज्य की सभी पार्टियां सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ थीं। वे भले सरकार में शामिल नहीं थीं लेकिन उनका समर्थन सरकार को था। चुनाव के बाद ऐसा लग रहा था कि राज्य में विपक्ष रहेगा और हो सकता है कि मजबूत विपक्ष रहे। लेकिन चुनाव नतीजों के एक हफ्ते के भीतर ही साफ हो गया है कि इस बार भी नगालैंड बिना विपक्ष के होगा। 60 सदस्यों की विधानसभा में विपक्ष का एक भी विधायक नहीं होगा। सभी 60 विधायक सरकार का साथ देंगे। सोचें, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विरोध करने वाली पार्टियों के भी विधायक जीते हैं लेकिन वे भी सरकार का साथ देंगे।
सत्तारूढ़ गठबंधन की दो पार्टियों, एनडीपीपी और भाजपा को क्रमशः 25 और 12 सीटें मिली हैं और उनको पूर्ण बहुमत है। इसके बावजूद बाकी तमाम पार्टियों ने सरकार का समर्थन किया है। उसकी पुरानी विरोधी पार्टी एनपीएफ के पांच विधायक जीते हैं और उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं मिला है। उसने पहले ही तरह सरकार का समर्थन कर दिया है। सबसे हैरानी का फैसला शरद पवार की पार्टी एनसीपी का है, जिसके सात विधायक जीते हैं। उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिल सकता था लेकिन उसने भी सरकार का समर्थन किया है। प्रदेश ईकाई ने समर्थन का प्रस्ताव दिया, जिसे पवार ने मंजूरी दी। इसके अलावा नीतीश कुमार की पार्टी के इकलौते विधायक ने भी सरकार को समर्थन दे दिया है, जिसके बाद नीतीश ने प्रदेश कमेटी भंग कर दी। चिराग पासवार और रामदास अठावल की पार्टियों के दो-दो विधायक जीते हैं और वे भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा चार निर्दलीय भी सरकार का समर्थन करेंगे।