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कार्ति चिदंबरम की जान बचाने की राजनीति!

पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे और कांग्रेस के सांसद कार्ति चिदंबरम ने पार्टी लाइन से हट कर इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि वे कांग्रेस के बारे में नहीं कह सकते हैं लेकिन उनको ईवीएम से कोई समस्या नहीं है। यानी उनके हिसाब से ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं है और न हो सकती है। सोचें, क्या भारतीय जनता पार्टी या किसी दूसरी पार्टी का सांसद इस तरह की बात कह सकता है? क्या भाजपा का कोई सांसद कह सकता है कि पार्टी की राय का तो नहीं पता लेकिन केंद्रीय एजेंसियों की विपक्षी नेताओं पर कारवाई ठीक नहीं है? लेकिन कार्ति चिदंबरम ने इस तरह की बात की है। उनको पता है कि कांग्रेस आधिकारिक रूप से ईवीएम पर सवाल उठा रही है इसके बावजूद उन्होंने पार्टी के उठाए एक मुद्दे को पंक्चर करने का काम किया है।

पिछले दिनों कांग्रेस ने इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के विशेषज्ञों को बुला कर ईवीएम में संभावित गड़बड़ियों के बारे में समझा और दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के नेता दूसरी कई विपक्षी पार्टियों को लेकर चुनाव आयोग के पास इसकी शिकायत करने गए। लेकिन कार्ति चिदंबरम ने इसकी हवा निकाल दी। सवाल है कि कार्ति चिदंबरम इस तरह की राजनीति क्यों कर रहे हैं? ऐसा लग रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों की एक के बाद एक हो रही कार्रवाई से वे परेशान हुए हैं। वे जेल काट चुके हैं लेकिन उसके बाद भी एजेंसियों की कार्रवाई में कमी नहीं आई है। यह पहला मौका नहीं है, जब कार्ति ने अपनी अलग राजनीति दिखाई है। पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में भी वे शशि थरूर के प्रस्तावक बने और उनके लिए खूब प्रचार किया। वे अपने को नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस से अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। उनको लगता है कि इससे वे केंद्रीय एजेंसियों से बच जाएंगे।

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