बिहार के शिक्षा मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने जब रामचरित मानस पर सवाल उठाया और इसे सामाजिक विद्वेष फैलाने वाला ग्रंथ कहा तो कहा गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दोनों चंद्रशेखर से नाराज हैं। मुख्यमंत्री की पार्टी के तो लगभग सभी बड़े नेताओं ने इस पर बयान दिया और चंद्रशेखर की आलोचना की। राजद से भी बड़े नेता शिवानंद तिवारी ने इसका विरोध किया। इसी तरह उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को बकवास बताया और इस पर पाबंदी लगाने की मांग की तो सूत्रों के हवाले से खबर आई कि अखिलेश यादव बहुत नाराज हैं। यह भी कहा गया कि वे प्रेस कांफ्रेंस करके इस पर पार्टी की राय स्पष्ट कर सकते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
असल में बिहार में चंद्रशेखर के बयान से न तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव नाराज थे और न उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से अखिलेश नाराज थे। यह भी कह सकते हैं कि यह दोनों पार्टियों की आगे की राजनीतिक योजना का हिस्सा है, जो उनके दो पिछड़े नेताओं ने रामचरित मानस को लेकर इस तरह का बयान दिया। जिस समय मौर्य से अखिलेश यादव की नाराजगी की खबर मीडिया में आई उसके दो दिन बाद ही मौर्य की अखिलेश से मुलाकात हुई और उसके एक दिन बाद उनको समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। ऐसी कोई खबर नहीं है कि अखिलेश ने रामचरित मानस पर दिए उनके बयान को लेकर उनसे कोई बात की। उलटे अखिलेश यादव के मौर्य से मिलने के बाद एक ओबीसी संगठन ने रामचरित मौर्य के समर्थन में रामचरित मानस की प्रतियां फाड़ीं और उन्हें जलाया। बिहार में भी चंद्रशेखर से नीतीश या तेजस्वी ने कोई जवाब तलब नहीं किया उलटे तेजस्वी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने सार्वजनिक रूप से उनकी पीठ थपथपा कर शाबासी दी।