nayaindia Kejriwal Delhi ordinance केजरीवाल की अध्यादेश पर क्यों अभी से भागदौड़?

केजरीवाल की अध्यादेश पर क्यों अभी से भागदौड़?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बहुत भागदौड़ कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार अपने हाथ में लेने के केंद्र सरकार का अध्यादेश जारी होने के बाद वे पूरे देश की परिक्रमा कर चुके हैं। ज्यादातर विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मिल चुके हैं और उनका समर्थन हासिल कर चुके हैं। अब वे इस प्रयास में लगे हैं कि कांग्रेस के नेता उनसे मिलें और इस मसले पर अपना समर्थन दें और वादा करें कि जब इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए संसद में पेश किया जाए तो कांग्रेस उसका विरोधी करेगी।

सवाल है कि इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा, जो जुलाई-अगस्त के महीने में होगा। उसमें भी तय नहीं है कि सरकार सत्र के शुरू में बिल पेश करेगी या बाद में। आमतौर पर जुलाई के तीसरे हफ्ते में मॉनसून सत्र शुरू होता है। सो, सामान्य समझदारी से लग रहा है कि बिल अगस्त में पेश होगा। इसका मतलब अभी कम से कम दो महीने का समय है इस बिल को संसद में आने में। लेकिन केजरीवाल अभी इस प्रयस में लगे हैं कि सारी पार्टियां उनसे वादा करें कि वे इस बिल का विरोध करेंगी। उनका कहना है कि यह सिर्फ दिल्ली का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश का मामला है।

अगर यह पूरे देश का भी मामला है और विपक्षी पार्टियों को संसद में इसका विरोध करना चाहिए तब भी यह काम तो अगस्त में ही होगा! केजरीवाल संसदीय प्रक्रिया के बारे में जानते हैं। उनको पता है कि संसद का सत्र शुरू होने के बाद हर दिन कार्यवाही से पहले विपक्षी पार्टियों की बैठक होती है और फ्लोर कोऑर्डिनेशन की योजना बनती है। उस दिन के एजेंडे के मुताबिक विपक्षी पार्टियां अपना रुख तय करती हैं। मॉनसून सत्र में भी जब इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए बिल के तौर पर लाया जाएगा तब विपक्षी पार्टियां इस पर रणनीति तय करेंगी। अगर उनको लगता है कि यह संविधान, लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली के लिए ठीक नहीं है तो वे इसका विरोध करेंगी। उस पर अभी से समर्थन मांगने और हासिल करने का क्या मतलब है?

सबसे हैरानी की बात है कि सारी विपक्षी पार्टियां केजरीवाल से कह भी रही हैं कि वे समर्थन देंगी। कोई यह नहीं कह रहा है कि समय आएगा तब देखेंगे। सत्र शुरू तो होने दीजिए, बिल आने दीजिए फिर विपक्ष की रणनीति बनेगी! कांग्रेस के नेता भी यह बात नहीं कर रहे हैं। उलटे केजरीवाल विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मिल कर उनसे कह रहे हैं कि वे कांग्रेस से कहें कि वह इस अध्यादेश का विरोध करे। असल में यह अध्यादेश का मामला नहीं है। यह केजरीवाल की राजनीति का मामला है। राष्ट्रीय नेता बनने की अपनी अदम्य महत्वाकांक्षा के चलते वे अभी से भागदौड़ कर रहे हैं और इस कोशिश में लगे हैं कि विपक्षी मोर्चे का फोकस उनके ऊपर बने। यह मैसेज जाए कि दिल्ली सरकार के एक मुद्दे पर विपक्ष एकजुट हुआ है और दिल्ली सरकार के मुखिया केजरीवाल ही केंद्र सरकार से लड़ रहे हैं। अपने मीडिया प्रबंधन के दम पर उन्होंने नीतीश, ममता, केसीआर आदि सबको पीछे छोड़ दिया है।

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