‘धड़क 2’: एक चूका हुआ मौक़ा
‘धड़क 2’ जातिवाद, सामाजिक दबाव, और प्रेम की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती है, जो इसे एक ज़रूरी फिल्म बनाते हैं लेकिन फ़िल्म का इरादा जितना साफ़ है, कहानी उतनी ही उलझी और खींची हुई लगती है। समाज को आईना दिखाने का प्रयास अधूरा और सतही लगता है। सिने-सोहबत आज के सिने-सोहबत में हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'धड़क 2'। दरअसल, भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव पर समय समय पर हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी कई बार अच्छी फिल्में आती रही हैं और आनी भी चाहिए। इससे कम से कम समाज में ये चर्चा तो...