बिकने में हमारा सस्तापन!
जरा हजार साला भारत इतिहास को याद करें! दिल्ली की सत्ता, बादशाहों, गवर्नर जनरलों को ललकारने वाले कितने ‘बुद्धिमान’ हुए? अर्थात दिल्ली के श्रेष्ठि-अमीर और लेखक, विद्वान वर्ग में कितने लोग बादशाह हुकुम से भिड़ने वाले हुए? याद करें इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय को? क्या तब निर्भयी बुद्धि की मशालें थीं? तब भी लुटियन दिल्ली के “काले कौवों” की जमात का सत्य खुला कि– झुकने के लिए कहा था और रेंगने लगे! यही शशि थरूरों का, भारत का सार है। सत्तावान की आरती उतारना, उसके साथ फोटो खिंचाना, उससे कुछ खैरात, कोई ओहदा पाना देश का एक सामान्य...