इतिहास के कूड़ेदान में या कूड़ेदान के इतिहास में
मैं भी जगदीप धनखड़ को 39 साल से जानता हूं। जब वे देवीलाल-चंद्रशेखर को छोड़ कर राजीव गांधी के साथ आए थे तो उन की सियासी-बुनकर प्रतिभा का मैं चश्मदीद रहा हूं। तभी कुछ लोग कहावत सुना रहे हैं कि ‘जाट मरा तब जानिए, जब तेरहीं हो जाए’। इसलिए आप को बता रहा हूं कि उन्हें सिरे से ख़ारिज़ करने की भूल मत कीजिए। ...बंगाल के खुले जंगल में उन्हें ममता का शिकार करने भेजा गया था, इसलिए उछलकूद की पूरी छूट थी। दिल्ली तो दिए गए लक्ष्यों को साधने का काम एक पिंजड़े में सिमट कर बैठने के लिए...