झूठे वादों के जाल में नहीं फंसते मतदाता
दशकों पहले हिंदी फिल्मों का एक गाना आया था, कि ‘ये जो पब्लिक है, सब जानती है’। सचमुच इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोग सब कुछ जानते हैं। यह गाना तो उस समय का है, जब मीडिया का विस्तार बहुत मामूली था। संचार का माध्यम सिर्फ अखबार और कुछ पत्रिकाएं थीं। सोशल मीडिया का नामोनिशान नहीं था। तब एक गीतकार और फिल्मकार को पता था कि जनता सब कुछ जानती है। अब संचार के इतने साधनों के बीच क्या यह सोचा जा सकता है कि जनता कुछ नहीं जानती, समझती है या जो जानती है वह गलत जानती है?...