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किसानों की कीमत पर

सरकार ने खाद्य महंगाई पर नियंत्रण पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। मगर इन कदमों का किसानों पर खराब असर होगा। महाराष्ट्र में प्याज किसानों का विरोध प्याज निर्यात रोकने के फैसले से उनमें पैदा हुए असंतोष की ही एक मिसाल है।

छह महीनों के अंदर आम चुनाव होने हैं और ऐसे में केंद्र सरकार का अनाज की महंगाई को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। इसलिए वह ऐसे हर कदम उठा रही है, जिससे आम उपभोक्ताओं- खास कर मध्य वर्ग- को अनाज की कीमतें ज्यादा ना चुभें। इनमें सबसे ताजा कदम प्याज के निर्यात पर रोक है। इसके पहले ना सिर्फ गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई गई, बल्कि खबर है कि सरकार रूस से गेहूं का आयात भी करने वाली है। इसके अलावा सरकार ने गेहूं को भंडार में रख सकने की सीमा घटाकर आधी कर दी है, जिससे व्यापारी अधिक मात्रा में गेहूं बाजार में उपलब्ध कराने को मजबूर हो गए हैँ। उधर चीनी महंगी ना हो, इसके लिए चीनी मिलों को निर्देश दिया गया है कि वे इथोनॉल बनाने में गन्ने के रस का इस्तेमाल ना करेँ। सरकार के कान संभवतः इन खबरों से खड़े हुए कि बाजार में कुछ दालों, प्याज, टमाटर आदि के दाम हाल में तेजी से बढ़े हैं। तो उसने खाद्य महंगाई पर नियंत्रण पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। मगर इन कदमों का खराब असर किसानों पर होगा।

महाराष्ट्र में जिस बड़ी संख्या में प्याज किसान विरोध जताने के लिए सड़कों पर उतरे हैं, वह प्याज निर्यात रोकने के फैसले से उनमें पैदा हुए असंतोष की मिसाल है। किसानों की मुसीबत यह है कि पैदावार संबंधी तमाम जोखिम उन्हें खुद उठाने पड़ते हैँ। लेकिन जब बाजार से उन्हें ज्यादा कीमत मिलने की संभावना होती है, तब सरकार के कदम उन लाभों से उन्हें वंचित कर देते हैं। इस तरह उनकी और प्रकारांतर में ग्रामीण क्षेत्र की आमदनी बढ़ने की संभावना कमजोर हो जाती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से मुद्रास्फीति लक्ष्य इस तरह से तय किए हैं, जिसका किसानों और ग्रामीण आमदनी पर प्रतिकूल असर पड़ा है। देश में आम जन के उपभोग में आई गिरावट का यह भी एक कारण है। यह दीगर बात है कि यह जटिल प्रश्न राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाता है। इसलिए केंद्र इस तरह के कदम बेधड़क उठा लेता है। आम चुनाव से पहले फिर उसने वही नजरिया अपनाया है।

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By NI Editorial

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