nayaindia general manoj pandeys तदर्थ रुख, अवांछित निर्णय

तदर्थ रुख, अवांछित निर्णय

उचित होगा कि ऐसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों में तदर्थ नजरिए से बचा जाए। बेशक, भारतीय व्यवस्था में सेना नागरिक प्रशासन के तहत आती है। मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि सेना की अंदरूनी पेशेवर विशेषज्ञता और प्रक्रियाओं की भी राजनेता अनदेखी करें।  

केंद्र ने सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडेय का कार्यकाल एक महीने के लिए बढ़ा दिया है। इस तरह वे अब अपनी रिटायरमेंट उम्र के 30 दिन बाद बाद तक इस पद पर बने रहेंगे। उन्हें 31 मई को अवकाश ग्रहण करना था, लेकिन अब 30 जून को रिटायर होंगे। केंद्र के इस फैसले से सुरक्षा विशेषज्ञों के एक हिस्से में असहजता देखी गई है। वैसे अपेक्षित तो यह होता है कि नौकरशाही के उच्च स्तर पर सेवा-विस्तार किसी को ना दिया जाए, परंतु सेना और सुरक्षा बलों के संदर्भ में यह और भी जरूरी हो जाता है। सवाल है कि देश में चुनाव के कारण एक तरह का राजनीतिक अनिश्चिय है, तो उससे सेना को क्यों प्रभावित होना चाहिए? सेनाध्यक्ष का पद राजनीतिक नहीं होता है, और ना ही राजनीति की खींचतान से उसे किसी भी रूप में प्रभावित होना चाहिए। आम समझ यही है कि सेना के उच्च पदों पर पहुंचने का एक सुव्यवस्थित एवं सुपरिभाषित सिस्टम इस संगठन के भीतर मौजूद है। इसमें अधिकारियों के आगे बढ़ने की कसौटी उनकी काबिलियत एवं वरिष्ठता होती है। इसलिए लंबे समय तक यह परंपरा चलती रही कि सेनाध्यक्ष का पद वरिष्ठता से तय होगा।

नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद यह सिलसिला भंग किया। इसीलिए उस पर पहले से ही कई हलकों से सेना का राजनीतिकरण करने की कोशिश के इल्जाम लगते रहे हैँ। अब वर्तमान सेनाध्यक्ष का कार्यकाल एक महीना बढ़ाकर उसने ऐसे नए आरोपों को आमंत्रित किया है। उसके ताजा कदम से यह संदेश जाएगा कि सेनाध्यक्ष नियुक्त करने में सेना की आंतरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की प्राथमिकताएं निर्णायक होती हैँ। आशंका है कि इसका प्रतिकूल प्रभाव सैन्य अधिकारियों के पेशेवराना नजरिए पर पड़ सकता है। आशा है कि प्रतिष्ठित सुरक्षा विशेषज्ञ अभी इस बारे में जो राय जता रहे हैं, राजनेता उन पर ध्यान देंगे। उचित होगा कि भविष्य में ऐसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों में तदर्थ नजरिए से बचा जाए। बेशक, भारतीय व्यवस्था में सेना नागरिक प्रशासन के तहत आती है। मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि सेना की अंदरूनी पेशेवर विशेषज्ञता और प्रक्रियाओं की भी राजनेता अनदेखी करें।

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