यह स्पष्ट आदेश आने के बाद इजराइल ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पर यहूदी विरोधी होने का इल्जाम लगा दिया। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की प्रतिक्रियाओं का सार भी यही है कि उनके लिए इस निर्णय का कोई महत्त्व नहीं है।
गजा में इजराइली कार्रवाई के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका की याचिका पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अंतरिम आदेश पर अमेरिका और उसके साथी देशों की प्रतिक्रिया “नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” के प्रति उनकी निष्ठा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। ह्वाइट हाउस ने कहा है कि इस निर्णय से इजराइल-फिलस्तीन युद्ध के बारे में उसके नजरिए में कोई बदलाव नहीं आएगा। कनाडा ने तो यह भी दोहरा दिया है कि इस मामले में दक्षिण अफ्रीका की याचिका की वैधता को वह स्वीकार नहीं करता। इसके बावजूद कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने दो टूक निर्णय दिया कि संयुक्त राष्ट्र की नरसंहार संबंधी संधि के तहत उसने दक्षिण अफ्रीका की याचिका को विचार के लिए स्वीकार किया है। इजराइल गजा में नरसंहार में शामिल है या नहीं, इस बारे में न्यायालय बाद में फैसला देगा। लेकिन दक्षिण अफ्रीका की तात्कालिक राहत संबंधी गुजारिश पर उसने छह महत्त्वपूर्ण आदेश दिए हैं। इनमें इस्तेमाल हुई भाषा से स्पष्ट है कि न्यायालय प्रथम दृष्टया मान रहा है कि यह नरसंहार का मामला है। उसने इजराइल को ऐसी हर कार्रवाई रोकने का आदेश दिया है, जिससे नरसंहार की आशंका हो। दक्षिण अफ्रीका ने तुरंत युद्धविराम का आदेश देने की गुजारिश की थी।
न्यायालय ने दो टूक ऐसा आदेश तो नहीं दिया, लेकिन उसके अन्य आदेशों का अर्थ व्यावहारिक रूप में युद्धविराम ही है। उसने गजा में मानवीय राहत पहुंचाने और मानवीय स्थितियां बहाल करने का आदेश दिया है। जाहिर है, यह कार्य बिना युद्धविराम के नहीं हो सकता। यह स्पष्ट आदेश आने के बाद इजराइल ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पर यहूदी विरोधी होने का इल्जाम लगा दिया। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की प्रतिक्रियाओं का सार भी यही है कि उनके लिए इस निर्णय का कोई महत्त्व नहीं है। इस रुख से उन्होंने संदेश दिया है कि वे सिर्फ उन नियमों को मानते हैं, जो उनके मुताबिक और उनके हित में हों। अगर नियम उनके खिलाफ जाने लगें, तो वे उसे ठोकर मार देते हैं। मगर इस रुख से वे दुनिया में अपने नैतिक बल और सॉफ्ट पॉवर को और क्षीण करेंगे। आखिर वैश्विक नैरेटिव पर अब उनका पहले जैसा कंट्रोल नहीं रह गया है।