ड्रिलिंग के कारण खतरा बढ़ गया था। इसके बावजूद इस परियोजना में ढांचागत जोखिम था या नहीं, इस बारे में राज्य सरकार ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। जबकि हादसे से संबंधित तमाम जवाबदेहियां तय करना उसकी ही जिम्मेदारी है।
तेलंगाना में सुरंग ढहे हफ्ता भर होने को है। आठ मजदूर उसमें फंसे हुए हैं। उन्हें निकालने की हर आधुनिक तरकीब अब तक बेअसर रही है। जब ये तरकीबें काम नहीं आईं, तो फिर से उम्मीद रैट माइनर्स से जोड़ी गई। साल भर पहले उत्तराखंड के सिलक्यारा में ढही सुरंग में फंसे मजदूरों को इन मजदूरों ने ही निकाला था। सिलक्यारा में सुरंग संकरी थी। तेलंगाना की सुरंग उससे अधिक चौड़ी है। फिर भी फंसे मजदूरों तक पहुंचना कठिन बना हुआ है। श्रीसेलम लेफ्ट बैंक कनाल (एसएलबीसी) सुरंग परियोजना में हुए हादसे के बाद से बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा बचाव बल (एनडीआरएफ) और एसडीआरएफ के कर्मियों के अलावा भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो भी शामिल हुए।
उन्होंने मजदूरों तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन वे पानी और कीचड़ को पार नहीं कर पाए। यह देश की ‘तकनीकी कुशलता’ का एक नायाब नमूना है। ये सवाल सिलक्यारा हादसे के बाद उठा था और फिर प्रासंगिक हुआ है कि क्या इस तरह की विकास परियोजनाओं को तय करते वक्त संभावित हादसों का पूर्वानुमान लगाया जाता है? क्या बचाव कार्य की पूर्व तैयारी की जाती है? एसएलबीसी सुरंग एक सिंचाई प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसके तहत तेलंगाना के नलगोंडा जिले में सिंचाई और पीने का पानी उपलब्ध कराने की योजना है। 22 फरवरी को इसके तहत जारी खुदाई के बीच सुरंग की छत का एक हिस्सा अचानक ढह गया।
बताया गया है कि ऊपर स्थित पहाड़ों से अचानक की सुरंग की छत पर पानी आ गया, जिससे वहां की मिट्टी ढीली हो गई और फिर छत ढह गई। जानकारों के मुताबिक ड्रिलिंग की वजह से खतरा बढ़ गया था। इसके बावजूद इस परियोजना में ढांचागत जोखिम था या नहीं, इस बारे में आधिकारिक रूप से राज्य सरकार ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। जबकि जोखिम के आकलन के बारे में स्थिति स्पष्ट करना और हादसे से संबंधित जवाबदेही तय करना सरकार की ही जिम्मेदारी है। ज्यादातर ऐसे हादसों के शिकार गरीब मजदूर होते हैं, इसलिए कुछ रोज में ऐसी घटनाओं को भुला दिया जाता है। क्या इस बार भी ऐसा ही होगा?