Wednesday

25-06-2025 Vol 19

ट्रंपिज्म से उथल-पुथल

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सहयोगी देशों के खिलाफ मोर्चा खोल ट्रंप अमेरिका के क्या हित साध पाएंगे? ट्रंप मानते हैं कि अमेरिका की मुख्य प्रतिद्वंद्विता चीन से है। मगर चीन से निपटने का यह क्या तरीका है, ये बात खुद अमेरिकी विश्लेषक नहीं समझ पा रहे हैं।

डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति पद संभालने में अभी दस दिन बाकी हैं। लेकिन इसके पहले ही उन्होंने कई मोर्चे खोल दिए हैं। खास बात यह है कि उन्होंने ये मोर्चे अमेरिका के सहयोगी या ऐसे देशों के खिलाफ खोले हैं, जिन्हें अमेरिका अब तक अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखता रहा है। इसके उलट रूस के मामले में उनका रुख नरम नजर आया है। ट्रंप का अपना स्टाइल है। वे बोलते वक्त कूटनीतिक मर्यादाओं का ख्याल नहीं करते। वरना, कनाडा को वे अमेरिका का 51वां राज्य बन जाने का बार-बार ऑफर नहीं देते! अब तो उन्होंने एक नक्शा भी जारी कर बता दिया है कि कनाडा अमेरिका में शामिल हुआ, तो मानचित्र पर अमेरिका कैसा दिखेगा। उनकी दलील है कि कनाडा अमेरिकी सब्सिडी पर टिका हुआ है। उसकी सुरक्षा अमेरिका सुनिश्चित करता है।

एक अन्य पड़ोसी मेक्सिको के खिलाफ भी उन्होंने आक्रामक लहजा अपनाया है। पहले कनाडा के साथ-साथ उसके यहां से होने वाले आयात पर भी 25 फीसदी शुल्क लगाने का उन्होंने एलान किया। अब कहा है कि मेक्सिको खाड़ी का नाम बदल कर वे अमेरिकन खाड़ी कर देंगे। दोनों में सख्त प्रतिक्रिया लाजिमी है। कनाडा के राजनीतिकों ने तो अमेरिकी राज्यों को ऑफर दे दिया है कि वे अपने यहां जनमत संग्रह करवा कर कनाडा में शामिल हो जाएं और कनाडा में मौजूद यूनिवर्सल हेल्थ केयर का लाभ उठाएं! मेक्सिको ने कैलिफॉर्निया और अन्य अमेरिकी राज्यों के उन इलाकों का नाम अमेरिका मेक्सिकाना करने का सुझाव दिया है, जो पहले मेक्सिको का हिस्सा थे।

पनामा नहर पर फिर कब्जा जमाने की ट्रंप की धमकी ने लैटिन अमेरिका में हलचल पैदा की है। जबकि ग्रीनलैंड को अमेरिकी इलाका बनाने की उनकी घोषणा से पूरा यूरोप भड़का हुआ है। ना सिर्फ डेनमार्क (ग्रीनलैंड जिसका हिस्सा है), बल्कि फ्रांस और जर्मनी ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई है। सवाल है कि इस रुख के साथ ट्रंप अमेरिका के क्या हित साध पाएंगे? ट्रंप मानते हैं कि अमेरिका की मुख्य प्रतिद्वंद्विता चीन से है। मगर चीन पर दबाव बनाने का यह क्या तरीका है, ये बात खुद अमेरिकी विश्लेषक भी नहीं समझ पा रहे हैं।

NI Editorial

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