ताजा रिपोर्ट से भले पश्चिम बंगाल में महिला कैदियों की बदहाली सामने आई हो, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी सूरत बेहतर नहीं है। हालिया अन्य रिपोर्टों ने भी महिला कैदियों के यौन शोषण और उनके अधिकारों के हनन का कच्चा चिट्ठा खोला है।
किसी सभ्य और संवेदनशील देश को यह जानकारी शर्मसार कर देगी कि वहां की जेलें महिलाओं के यौन शोषण का अड्डा बनी हुई हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में ऐसी खबरें बिना कोई हलचल पैदा किए आती और चली जाती हैं। महिला कैदियों की दयनीय सूरत को सामने लाने वाली ताजा खबर पश्चिम बंगाल से आई है। कलकत्ता हाई कोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में बताया गया कि पश्चिम बंगाल की जेलों में गर्भवती महिला कैदियों की तादाद लगातार बढ़ रही है। 2023 तक जेल में बंद महिला कैदियों ने 196 बच्चों को जन्म दिया। राज्य की विभिन्न जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों की मौजूदगी, उनके रहन-सहन, खान-पान और चिकित्सा सुविधाओं पर निगाह रखने और समय-समय पर इस बारे में अदालत को रिपोर्ट देने के लिए 2018 में हाई कोर्ट ने न्याय मित्र की नियुक्ति की थी। न्याय मित्र की ताजा रिपोर्ट महिला कैदियों की अवस्था के बारे में है। वैसे उचित ही यह ध्यान दिलाया है कि इस रिपोर्ट से भले पश्चिम बंगाल में महिला कैदियों की चौंकाने वाली बदहाली सामने आई है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी तस्वीर बेहतर नहीं है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2022 की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट में बताया गया था कि 31 दिसंबर 2022 तक देश की विभिन्न जेलों में 1,537 महिला कैदी 1,764 बच्चों के साथ रह रही थीं। इस मामले में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। इन रिपोर्टों ने महिला कैदियों के यौन शोषण और उनके अधिकारों के हनन का कच्चा चिट्ठा खोला है। जेल प्रशासन से जुड़े रहे अधिकारियों का कहना है कि हाल के वर्षो में जेलों के भीतर हालात और बिगड़े हैं। ताजा रिपोर्ट से भी इसी बात की पुष्टि हुई है। जाहिर है, ऐसी रिपोर्टें सामने नहीं आतीं, तो हकीकत की गंभीरता का अंदाजा हमें नहीं लगता। बहरहाल, अब सवाल उठा है कि कि जेलों में महिला कैदियों का यौन शोषण कैसे रोका जाए? प्रश्न यह भी है कि अगर सरकारी प्रशासन के तहत आने वाले जेलों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर वे कहां महफूज रह सकती हैं?