निज्जर- पन्नूं मामलों में भारत के खिलाफ माहौल कनाडा और अमेरिका की सरकारों ने बनाया है। चुनौती उन सरकारों के सामने उनकी धारणाओं को गलत साबित करने की है। वरना, इससे संबंधित खबरें हर कुछ अंतराल पर मीडिया में आती रहेंगी और मुद्दा गरमाया रहेगा।
खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नूं के मामले में एक अमेरिकी वेबसाइट की ताजा खबर का फुर्ती से खंडन कर भारत ने उचित कदम उठाया है। लेकिन असल चुनौती अमेरिकी अधिकारियों को यह भरोसा दिलाने की है कि अमेरिका और कनाडा स्थित खालिस्तानी उग्रवादियों की हत्या की योजना में भारत सरकार का कोई हाथ नहीं है। ये खबर अमेरिकी जांच एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन के निदेशक की भारत यात्रा से ठीक पहले छापी गई। इसमें दावा किया गया कि भारत सरकार की ओर से अपने दूतावासों को इन उग्रवादियों के खिलाफ ‘जटिल कार्रवाई योजना’ में सहयोग करने का निर्देश भेजा गया था। अमेरिकी वेबसाइट ने दावा किया कि उस निर्देश की कॉपी उसके पास है, जिस पर भारत के विदेश सचिव के दस्तखत हैं। इस खबर के मुताबिक इस वर्ष अप्रैल में भेजे गए दस्तावेज में कई उग्रवादियों का जिक्र है, जिनमें कनाडा में मारा गया हरदीप सिंह निज्जर भी शामिल है।
हालांकि वेबसाइट ने कहा है कि उस दस्तावेज में सीधे तौर पर उन उग्रवादियों की हत्या का उल्लेख नहीं है, मगर उसमें अमेरिका और कनाडा स्थित दूतवासों से भारतीय खुफिया एजेंसियों से सहयोग करने को कहा गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने ऐसा कोई निर्देश भेजे जाने की बात का सिरे से खंडन किया है। साथ ही कहा है कि संबंधित वेबसाइट की पहचान पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों की फर्जी कहानियों को फैलाने वाले माध्यम के रूप में रही है। बेशक, इस खंडन से भारत के लिए संभावित नुकसान को सीमित किया जा सकेगा। बहरहाल, यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि ऐसी खबरें अक्सर जानबूझ कर लीक की गई सही या गलत सूचनाओं के आधार पर प्रकाशित होती हैं। भारत के सामने चुनौती ऐसी लीक के स्रोत तक पहुंचने की है। ये बात भी ध्यान में रखने की है कि इस मामले में भारत के खिलाफ माहौल कनाडा और अमेरिका की सरकारों ने बनाया है। चुनौती उन सरकारों के सामने उनकी धारणाओं को गलत साबित करने की है। वरना, ऐसी खबरें हर कुछ अंतराल पर मीडिया में आती रहेंगी और यह मुद्दा गरमाया रहेगा। स्पष्टतः ऐसा होना भारत के हित में नहीं है।