Friday

01-08-2025 Vol 19

आखिर आई अच्छी खबर

464 Views

कतर में सजायाफ्ता भारतीय नौ सेना के पूर्व कर्मचारियों की रिहाई की खबर सुखद आश्चर्य की तरह आई है। बेशक इसे संभव करा पाना भारत सरकार की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है। ये कर्मी कतर की एक नौवहन कंपनी में नौकरी करने गए। लेकिन उन्हें वहां इजराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। पिछले साल कतर की एक अदालत ने उन्हें इस जुर्म में मौत की सजा सुना दी। लाजिमी है कि इस घटनाक्रम से भारतवासी आहत थे। उसके बाद संभवतः भारत सरकार ने इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। दिसंबर में जब संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भाग लेने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई गए, तब वहां उनकी कतर के अमीर से मुलाकात हुई थी। समझा जाता है कि वहीं से इन कर्मियों की रिहाई की जमीन तैयार हुई। पहले कदम के तौर पर एक अपील अदालत ने कैदियों के मृत्युदंड को माफ कर दिया। अब अचानक यह खबर आई है कि आठ में सात कर्मी भारत पहुंच चुके हैं। उनके सकुशल यहां आ जाने के बाद भारत सरकार ने यह खबर सार्वजनिक की।

बहरहाल, यह मामला कुछ सवाल हमारे सामने छोड़ गया है, जिन पर गंभीर चर्चा की जरूरत है। आज के तीखे ध्रुवीकरण के माहौल में एक बड़ा नुकसान यह है कि ऐसी बारीक चर्चा की गुंजाइश बेहद सिकुड़ी हुई है। इसके बीच ऐसी हर घटना को प्रधानमंत्री मोदी की कामयाबी या नाकामी से जोड़ दिया जाता है। यह घटना भी इसका अपवाद नहीं है। बहरहाल, इस मुद्दे पर अवश्य चर्चा होनी चाहिए कि क्या विदेश में जाकर किसी अपराध में शामिल होने वाले हर भारतीय को बचाना भारत सरकार का कर्त्तव्य है? या कोई व्यक्ति अपने कार्यों के लिए खुद जवाबदेह है? यह सवाल उस समय और महत्त्वपूर्ण हो गया है, जब भारत सरकार ने अन्य देशों के साथ समझौता करके अपने श्रमिकों को वहां भेजने की नीति अपना ली है। वैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या ऐसी नीति वाजिब है? क्या व्यक्तिगत रूप से कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता और सरकारी नीति के तहत लोगों को कहीं भेजने की योजना में फर्क नहीं किया जाना चाहिए?

NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *