राहुल गांधी का दावा है कि महाराष्ट्र जैसी चुनावी “मैच फिक्सिंग” बिहार में भी होगी। तो कांग्रेस के लिए ऐसे चुनाव में भाग लेने का क्या मतलब होगा, जिसके स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ना होने की सूचना उसके पास पहले से हो?
राहुल गांधी का इल्जाम है कि महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव का नतीजा धांधली से तय हुआ। लोकसभा में विपक्ष के नेता ने (विभिन्न भाषाओं के) कई अखबारों में लेख लिख कर “चुनावी धांधली के ब्लू प्रिंट” का विवरण दिया है। उन्होंने उन पांच चरणों का जिक्र किया है, जिसके जरिए “चुनावी धांधली” हो रही है। ये चरण हैः चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली समिति पर “कब्जा”, वोटर लिस्ट में “फर्जी मतदाता” जोड़ना, मतदान प्रतिशत बढ़ा-चढ़ा कर बताना, चुनिंदा सीटों पर (जहां भाजपा कमजोर हो) बोगस वोटिंग कराना, और फिर सबूत को छिपा देना। कांग्रेस नेता का दावा है कि ऐसी “मैच फिक्सिंग” बिहार में, और उन सभी जगहों पर दोहराई जाएगी, जहां भाजपा ‘हार रही होगी’।
तो फिर कांग्रेस को क्या करना चाहिए? ऐसे चुनाव में भाग लेने का क्या मतलब हो सकता है, जिसके बारे में उसे पहले से मालूम हो कि वहां सत्ता पक्ष को जिताने का इंतजाम पहले से कर रखा गया है? ऐसे में क्या उचित नहीं होगा कि कांग्रेस बिहार विधान सभा चुनाव के बहिष्कार का एलान करे? आखिर उसके भाग लेने से उन चुनावों को वैधता मिलेगी। देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं हो रहे हैं, यह धारणा लगातार जनमत के बड़े हिस्से में गहराई है। खुद राहुल गांधी ने 2022 में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकलने से पहले उस अभियान का कारण यह बताया था कि देश में समान चुनावी धरातल और विपक्ष का फर्ज़ निभाने की सामान्य परिस्थितियां नहीं रह गई हैं। मगर मुद्दा है कि उसके बाद कांग्रेस ने क्या किया?
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में जीत और लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद इन शिकायतों को अवकाश पर भेज दिया गया! महाराष्ट्र चुनाव के बाद से उन्हें पुनर्जीवित किया गया है। मगर इन बातों की क्या साख हो सकती है, अगर इल्जाम लगा रहे नेता के पास इस “लोकतंत्र के जहर” का मुकाबला करने की कोई सोच ना हो? अतः बेहतर होगा, गांधी ऐसी रणनीति भी बताएं। वरना उनकी बातों को हलकेपन से लिया जाएगा। उलटे लोग इसे संभावित हार का बहाना ढूंढने की कोशिश के रूप में देखेंगे।