भोपाल। ज्योतिरादित्य के बल्लभ भवन और श्यामला हिल्स की राह में यदि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह रोड़ा साबित हुए.. तो उनके पिता श्री स्वर्गीय माधवराव को अर्जुन सिंह और कमलनाथ ने प्रतिद्वंद्विता के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंचने दिया था.. उस वक्त राजीव गांधी चाहते थे कि माधवराव मध्य प्रदेश की कमान संभाले.. पहली बार विधायक दल की मैराथन बैठक और केंद्रीय हस्तक्षेप के बावजूद अर्जुन सिंह का उत्तराधिकारी मोतीलाल वोरा को चुना गया.. एक और मौका आया जब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया.. माधवराव जिन्होंने लगातार लोकसभा के 9 चुनाव जीते और केंद्र में कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले लेकिन चाह कर भी बड़े महाराज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची में अपना नाम दर्ज नहीं करा पाए.. दोनों मौके पर माधवराव दिल्ली से भोपाल नहीं आए.. उन्हें हाईकमान की पसंद माना गया लेकिन भोपाल से फैसला उनके समर्थन में नहीं जाने दिया गया..
माधवराव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ से हुई बाद में वह कांग्रेस के कद्दावर नेता बनकर उभरे.. उस वक्त राजमाता विजय राजे सिंधिया जनसंघ से लेकर भाजपा का अटल आडवाणी के बाद सबसे बड़ा चेहरा था.. जिन्होंने कभी1967 में पहले कांग्रेस छोड़ी और बाद में सरकार गिर गई थी.. करीब 52 साल बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य ने भी कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का दामन थामा.. अपने पिता स्वर्गीय माधवराव जिनकी राजनीतिक यात्रा जनसंघ से शुरू हुई थी से हटकर विरासत की राजनीति को ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस में रहते आगे बढ़ाया ..
छोटे महाराज ज्योतिरादित्य पिता के आकस्मिक निधन के बाद उपचुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे.. बाद में 2004 2009 2014 का लोकसभा चुनाव ज्योतिरादित्य ने जीता लेकिन 2019 में गुना से लोकसभा का चुनाव हार गए,.. यह अप्रत्याशित परिणाम उस वक्त सामने आया जब कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार मध्यप्रदेश में बन चुकी थी.. राहुल गांधी की व्यक्तिगत पसंद लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर कांग्रेस के अंदर वो राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा वह बने रहे ..अलबत्ता सिंधिया समर्थकों का कमलनाथ सरकार में दबदबा जरूर रहा और यह स्थिति कमलनाथ सरकार के तख्तापलट के बाद अस्तित्व में आई शिवराज सरकार के अंदर भी साफ देखा जा सकता है.. यहां सिंधिया समर्थक मंत्रियों की पूछ परख भगवा थामने के बाद पहले से ज्यादा बढ़ी हुई है.. मध्य प्रदेश की राजनीति का इतिहास बताता है कि कांग्रेस के अंदर कभी कमलनाथ ने किंग मेकर बनकर दिग्विजय सिंह के लिए मोर्चाबंदी की ओर माधवराव को सीएम नहीं बनने दिया..
तो कमलनाथ ने माधवराव के पुत्र ज्योतिरादित्य को भी श्यामला हिल्स तक पहुंचने दिया.. यही नहीं राहुल गांधी के हस्तक्षेप को नकार कर कांग्रेस के लिए सीएम इन वेटिंग और भाजपा के टारगेट नहीं माफ करो महाराज यानि ज्योतिरादित्य को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया.. बात यहीं खत्म नहीं होती मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य को पहली पसंद के तौर पर राज्यसभा में भी नहीं जाने दिया.. लोकसभा का चुनाव दिग्विजय सिंह भी हारे लेकिन राज्यसभा के तौर पर लगातार उनकी दूसरी पारी को प्राथमिकता दी गई.. सिंधिया घराने से खास तौर से माधवराव से राजीव गांधी की और ज्योतिरादित्य से राहुल गांधी की मित्रता पर सूबे की सियासत में कभी कमलनाथ ,अर्जुन सिंह तो कभी कमलनाथ, दिग्विजय सिंह भारी साबित हुए.. मध्य प्रदेश कांग्रेस की इंटरनल पॉलिटिक्स पर कांग्रेस आलाकमान सिंधिया के समर्थन में कभी वीटो पावर का उपयोग नहीं कर पाया.. माधवराव की राजीव गांधी और सोनिया गांधी की तरह ज्योतिरादित्य की सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से निकटता भी कोई काम नहीं आई..
पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई में प्रदेश कांग्रेस की विरासत की राजनीति में कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ सांसद बन चुके हैं.. तो दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री बन कर पहले ही स्थापित हो चुके है.. नकुल नाथ के मुकाबले जयवर्धन का प्रदेश में बड़ा नेटवर्क स्थापित हो चुका है.. जिसे दिग्विजय सिंह लगातार मजबूत करने में जुटे है.. जयवर्धन को कमलनाथ के बाद की कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा माना जा रहा है.. वह बात और है कि राहुल की सूची में उनकी पसंद के नेता और भी हैं.. लेकिन पाला बदलने के बाद ज्योतिरादित्य भाजपा के भविष्य का बड़ा चेहरा बनकर नाथ राजा के साथ नकुल जयवर्धन की कांग्रेस को भी सीधी चुनौती देने के लिए तैयार है.. पिता माधवराव की तरह फिलहाल ज्योतिरादित्य भी दिल्ली से ही ग्वालियर चंबल से आगे प्रदेश की राजनीति कर रहे हैं..
महल की राजनीति से बाहर निकलते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जरूर राजधानी भोपाल में सरकारी आशियाना बना लिया है.. जो उनके इरादों के साथ उनकी भविष्य की राजनीतिक दिशा को समझाने के लिए काफी है.. भाजपा में आने के बाद ज्योतिरादित्य को पार्टी ने सबसे पहले राज्यसभा में भेजा तो उसके बाद मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल कर धीरे-धीरे उनका कद और सियासी वजन बढ़ाया गया.. अपनी स्वीकार्यता और उपयोगिता ज्योतिरादित्य को अभी 2023 और 24 में साबित करना है .. बस इंतजार है समय के साथ बदलती भूमिका और नेतृत्व के समर्थन का.. सवाल खड़ा होना लाजमी है क्या ज्योतिरादित्य अपने पिता स्वर्गीय माधवराव के अधूरे ख्वाब को पूरा करने में विशेष दिलचस्पी लेंगे.. जो मिशन महाराज कांग्रेस में रहते चाह कर भी पूरा नहीं कर पाए.. क्या भाजपा में आने के बाद उसकी संभावनाएं बढ़ जाती है.. कांग्रेस में रहते सूबे की सक्रिय राजनीति से दूर दिल्ली की राजनीति से क्या ज्योतिरादित्य का रास्ता मध्यप्रदेश के लिए निकलेगा तो आखिर कब.. 2018 में शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य का चेहरा आगे रखकर जो चुनौती दी थी.. अब वह गुजरे जमाने की बात हो गई है ..वही सिंधिया अब भाजपा के इस चौहान को अपना नेता स्वीकार कर बतौर मुख्यमंत्री शिवराज और उनकी सरकार को स्थिरता दिए हुए हैं..
शिव- ज्योति एक्सप्रेस और दूसरे क्षेत्र के क्षत्रप, दिग्गज नेताओं की जोड़ी पर फिलहाल भारी साबित होती हुई देखी जा सकती है.. सवाल यहीं पर खड़ा होता है ज्योतिरादित्य और उनके जिन समर्थकों के दम पर शिवराज ने अपनी चौथी पारी का आगाज किया था .. भविष्य में अपना उत्तराधिकारी जब भी चुनने का समय आएगा क्या उनकी पहली प्राथमिकता कभी ज्योतिरादित्य बन पाएंगे.. लाख टके का सवाल ज्योतिरादित्य क्या मोदी ,शाह ,नड्डा की भाजपा की पसंद के बावजूद मध्यप्रदेश के लिए कभी संघ की भी पसंद साबित होंगे.. योगी के उत्तर प्रदेश, और मोदी शाह के गुजरात मॉडल की तुलना में राजमाता सिंधिया, अटल बिहारी ,कुशाभाऊ ठाकरे शिवराज और उमा भारती के मध्य प्रदेश से संघ की और ज्यादा दिलचस्पी से इनकार नहीं किया जा सकता.. क्या संघ और भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे महारथियों की काट तलाशने में दिलचस्पी लेगा तो आखिर कब.. मुख्यमंत्री बनने का जो ख्वाब कांग्रेस में रहते माधवराव सिंधिया के लिए अधूरा रह गया था जबकि उस वक्त राजीव गांधी की वह व्यक्तिगत पसंद भी थे.. क्या सिंधिया घराने के इस अधूरे मिशन को ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आने के बाद अंजाम तक पहुंचा पाएंगे..
कैलाशवासी श्रीमंत माधवराव सिंधिया के 78 वे जन्मदिन पर एक बार फिर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ संगीत सभा का आयोजन किया जा रहा..10 मार्च ग्वालियर स्थित कटोरा ताल के सामने सिंधिया की क्षत्री पर उनके समर्थकों शुभचिंतकों के साथ सियासतदानों का जमावड़ा लगेगा .. जिसे रियासत और सियासत दोनों से जुड़े ज्योतिरादित्य का शक्ति परीक्षण भी माना जा सकता .. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य के साथ खासतौर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की मौजूदगी एक बार फिर गौर करने लायक होगी.. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी इस आयोजन में शिरकत कर सकते हैं.. सिंधिया समर्थक मंत्रियों की मौजूदगी तो रहेगी .. गुजरात चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जयविलास पैलेस पहुंचने पर राजनेताओं का जमावड़ा लगा था .. उस वक्त जय भान सिंह पवैया से लेकर अनूप मिश्रा भी खासतौर से मौजूद थे ..चुनावी साल में सिंधिया परिवार से हटकर कांग्रेस जब नए सिरे से बिसात बिछाने को मजबूर है.. तब क्षेत्र में विकास को एक नई दिशा देने वाले ज्योतिरादित्य के नेतृत्व में भगवा धारियों का जमावड़ा लगने जा रहा.. गौरतलब है माधवराव का कांग्रेस से चुनावी और गहरा नाता लंबे समय तक रहा.. कांग्रेस से बगावत के बाद ज्योतिरादित्य अपने पूज्य पिता माधवराव को आदर्श मानकर सियासत में आगे बढ़ रहे हैं..
भाजपा ने कांग्रेस के पृष्ठभूमि वाले और दूसरे नेताओं सरदार पटेल ,बाबासाहेब आंबेडकर की तरह माधवराव को भी अपनाया.. प्रदेश भाजपा का दफ्तर में विशेष मौके पर माल्यार्पण या प्रदेश के दूसरे अंचलों में माधवराव की प्रतिमा का अनावरण समारोह में भगवा धारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है.. फिर भी कांग्रेस ने माधवराव को नहीं छोड़ा लेकिन ज्योतिरादित्य अपने साथ विरासत की राजनीति के प्रणेता को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.. यूं तो सिंधिया परिवार का ग्वालियर चंबल अंचल के विकास में अहम योगदान रहा.. लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के बाद माधवराव से लेकर ज्योतिरादित्य ने क्षेत्र को नई पहचान दी.. माधवराव यानि महाराजा ने राजा रजवाड़े के खास होकर भी आम आदमी का दिल और भरोसा अपने व्यवहार और काम से जीता था.. रियासत से सियासत की राह में माधव पांचवी से तेरहवीं लोकसभा तक 9 बार लगातार सांसद रहे ..जिन्होंने सुचिता की सियासत और मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति से कभी समझौता नहीं किया.. प्रजातांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों पर आगे बढ़ कर उन्होंने राजनीति में एक नई नजीर पेश की .. तीन दशक की लंबी राजनीति में माधवराव 1991 में नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन मंत्री बने तब उन्होंने हवाई अड्डा का आधुनिकीकरण और एयर इंडिया के निजी करण की योजना आगे बढ़ाई 1995 में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी निभाई.. रेल मंत्रालय को एक अलग पहचान देने के कारण उन्हें हमेशा याद किया जाता है..
जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता एवं सांप्रदायिक सद्भाव देश की एकता एवं अखंडता से कोई समझौता नहीं किया..ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़े.. सिंधिया घराने का वह ग्लैमरस चेहरा जिन्हें राजनीति विरासत में मिली माधवराव सिंधिया ने कभी कोई चुनाव नहीं हारा.. जनसंघ से लेकर कांग्रेस और निर्दलीय चुनाव जीतने वाले माधवराव की दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की ताजपोशी होते-होते रह गई थी। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1989 में चुरहट लॉट्री कांड के समय अर्जुन सिंह पर मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने का काफी दबाव था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा थी कि माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए लेकिन बात नहीं बनी.. एक मौका और आया जब माधवराव सिंधिया मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उसके बाद 1993 में मध्य प्रदेश में चुनाव हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कुछ अलग बिसात बिछाई .… उस वक्त कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिली थी। तब मुख्यमंत्री के लिए श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, सुभाष यादव बड़े दावेदार थे। माधवराव सिंधिया के लिए यहां तक कहा जाता है दिल्ली में एक विशेष विमान स्टैंडबाई तैयार रखा था। क्योंकि कभी भी माधवराव सिंधिया को ताजपोशी के लिए भोपाल जाना पड़ सकता है। लेकिन नरसिम्हा राव ने इन तमाम लोगों को अनदेखा करते हुए अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र रहे दिग्विजय सिंह की ताजपोशी करने का ऐलान कर दिया था।
उन्होंने पहली बार जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उनके परिवार का गहरा नाता रहा है। उनकी मां विजया राजे सिंधिया पहले कांग्रेस में ही थीं .. बाद में विजय राजे सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए जनसंघ की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।माधवराव सिंधिया ने 26 साल की उम्र में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था और इसी के साथ ही उनके जीत का सिलसिला भी शुरू हो गया।माधवराव सिंधिया ने 1971 में मां राजमाता विजयराजे सिंधिया की छत्रछाया में लोकसभा का पहला चुनाव जनसंघ से लड़ा और जीत हासिल कर चुनावी राजनीति का आगाज किया ..
आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में भी माधवराव सिंधिया ने गुना से दोबारा जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश की थी और सफल भी हुए थे। लेकिन 80 के दशक में उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया था और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली। एक ऐसा भी दौर आया जब राजमाता बीजेपी से और पुत्र माधवराव कांग्रेस से जुड़ गए.. 1984 में ग्वालियर से अटल बिहारी बाजपेई को चुनाव हरा का माधवराव राष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा चेहरा बन चुके थे .. केंद्रीय रेल मंत्री के तौर पर माधवराव ने न सिर्फ मंत्रालय को एक पहचान दी बल्कि कई नई सौगात देकर रेल व्यवस्था को दुरुस्त किया था ..1996 में कांग्रेस छोड़कर विकास कांग्रेस का गठन और निर्दलीय चुनाव लड़ कर जीतने वाले माधवराव 1984 के बाद 1998 तक सभी चुनाव ग्वालियर से लड़े और जीते..
राजमाता की मृत्यु के बाद माधवराव ने ग्वालियर छोड़कर गुना से चुनाव लड़ा था.. 30 सितंबर 2001 को विमान दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के बाद गुना से उनके पुत्र ज्योतिरादित्य को चुनाव कांग्रेस ने लड़ाया था..गांधी परिवार से उनकी दोस्ती के भी काफी चर्चे रहे। माधवराव के कांग्रेस में शामिल होने के पीछे इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की बड़ी भूमिका मानी जाती।इसके बाद फिर माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी की मित्रता किसी से छुपी नहीं थी। प्रियंका गांधी के साथ ज्योतिरादित्य ने उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान भी संभाली .. बदलते राजनीतिक परिदृश्य में ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा में हैं।