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गपशप

भारतीय एजेंसियां कुछ नहीं करेंगी!

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लाख टके का सवाल है कि हिंडनबर्ग रिसर्च में हुए खुलासे के बाद भारत की एजेंसियां क्या करेंगी? मेरा मानना है कुछ नही। संभव ही नहीं है जो भारत सरकार की जांच एजेंसियां और वित्तीय एजेंसियां ईमानदारी और पारदर्शिता से जांच करें। हमेशा की तरह इस पर भी मिट्टी डाल देंगी। ध्यान रहे भारत में वित्तीय गड़बड़ियों और टैक्स हैवन देशों में कंपनी बना कर काले धन को सफेद करने के कितने ही मामले अंतरराष्ट्रीय जांच में एक्सपोज हुए है। पनामा पेपर्स की मिसाल है, जिसमें देश के कई बड़े कारोबारियों, नेताओं और अभिनेताओं की लिफाफा कंपनियों की जानकारी सामने आई। लेकिन या तो किसी की जांच नहीं हुई या जांच शुरू हुई तो कहीं नहीं पहुंची। सो, क्या हिंडनबर्ग रिपोर्ट के साथ भी ऐसा नहीं होगा?

कुछ दिन पहले ही अदानी समूह को लेकर दो और रिपोर्ट आई थी। जिस तरह से हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में बताया गया है कि अदानी समूह की कंपनियों के शेयरों के भाव 85 फीसदी बढ़ाए गए हैं और इनमें 85 फीसदी की कमी आ सकती है। उसी तरह एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पिछले दिनों बताया था कि अदानी समूह की कंपनियां किस तरह से ओवर लिवरेज्ड हैं। यानी उनको कैसे क्षमता से ज्यादा कर्ज दिया गया है। पिछले साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ग्रुप की संस्था क्रेडिटसाइट ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कंपनी ओवरलिवरेज्ड है। इसने कर्ज लेकर आक्रामक तरीके से उसे अपने मौजूदा कारोबार में या नए बिजनेस में निवेश किया है। इस आधार पर एजेंसी का कहना था कि अगर जरा सी स्थित बिगड़ी तो कर्ज आधारित विकास की इसकी महत्वाकांक्षी योजना कर्ज के विशाल जाल में तब्दील हो सकती है, जिसमें फंस कर पूरा समूह या उसकी कुछ कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। क्रेडिटसाइट के मुताबिक मार्च 2022 तक कंपनी के ऊपर 1.88 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। अगर उसके कैश बैलेंस को हटा दें तो उसके ऊपर नेट कर्ज 1.61 लाख करोड़ रुपए का था। कंपनी के ऊपर कर्ज का 55 फीसदी हिस्सा सरकारी बैंकों का है। सोचें, अगर समूह की एक या एक से ज्यादा कंपनियां दिवालिया हुईं तो सरकारी बैंकों की क्या स्थिति होगी?

क्रेडिटसाइट की रिपोर्ट आने के कुछ दिन बाद ही खबर आई थी कि किस तरह से अदानी समूह में भारत की विशाल सरकारी कंपनी जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी का निवेश क्रमशः बढ़ता गया है। पिछले साल दिसंबर में आई रिपोर्ट के मुताबिक अडानी समूह के शेयरों में एलआईसी का निवेश दो साल में बढ़ कर 74,142 करोड़ रुपए हो गया है। अदानी समूह की कुल बाजार पूंजी में अकेले एलआईसी का हिस्सा 3.9 फीसदी है। करीब साढ़े चार लाख करोड़ की बाजार पूंजी वाली कंपनी अदानी इंटरप्राइजेज में सितंबर 2020 में एलआईसी का हिस्सा एक फीसदी से कम था, जो सितंबर 2022 में बढ़ कर 4.02 फीसदी हो गया यानी चार गुना से ज्यादा बढ़ा। इसी तरह अदानी टोटल गैस में सितंबर 2020 में एलआईसी का हिस्सा एक फीसदी से कम था, जो सितंबर 2022 में बढ़ कर 5.77 फीसदी हो गया। अदानी ग्रीन एनर्जी और अदानी ट्रांसमिशन में भी एलआईसी की हिस्सेदारी बढ़ी है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार में जो भूचाल आया है और अदानी समूह की कंपनियों के शेयर डूब रहे हैं उन्हें बचाने के लिए कोई सरकारी कंपनी सामने आती है या नहीं? इन दो चीजों पर नजर रखने की जरूरत है कि ईडी, सीबीआई, डीआरआई, सेबी जैसी संस्थाएं पारदर्शिता से जांच शुरू करती हैं या नहीं, कंपनी के शेयर बाजार में कामकाज करने पर रोक लगाई जाती है या नहीं और केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम अदानी के बचाव में आगे आते हैं या नहीं?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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