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देश, समाज पर कोरोना का बड़ा असर

कोरोना से पूरी समाज व्यवस्था प्रभावित हुई है। देश में आर्थिक असमानता बढ़ी, गरीबी में इजाफा हुआ और सरकार के ऊपर लोगों की निर्भरता बढ़ी। कोरोना महामारी के समय महानगरों और बड़े शहरों में लाखों की संख्या में लोगों का पलायन हुआ। लोग अपने गांवों में लौटे, जिसकी वजह से रोजगार की मनरेगा योजना के तहत काम मांगने वालों की संख्या बढ़ी। आजादी के बाद के सबसे बड़े पलायन के दौर में केंद्र सरकार ने गरीबों के लिए पांच किलो अनाज की योजना शुरू की थी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के नाम से शुरू हुई योजना अभी तक चल रही है। लगभग तीन साल तक सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज बिल्कुल मुफ्त देती रही और पांच किलो अनाज राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सस्ते दाम पर मिलता रहा।

सरकार ने अभी पांच किलो सस्ते अनाज की योजना बंद कर दी है लेकिन प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में पांच किलो मुफ्त अनाज की योजना एक साल और चलेगी। देश के 81.35 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज मिलेगा। कोरोना महामारी के पहले साल में मनरेगा के तहत 363 करोड़ श्रम दिवस की मांग हुई। इससे पहले कभी इतनी मांग मनरेगा के रोजगार की नहीं रही। अब तीन सौ करोड़ श्रम दिवस से कम है लेकिन कोरोना से पहले के समय के मुकाबले यह अब भी ज्यादा है। सो, एक तरफ पांच किलो अनाज और दूसरी ओर मनरेगा की मजदूरी के सहारे देश की तीन-चौथाई से ज्यादा आबादी का काम चल रहा है। इसमें किसानों को जोड़ लें, जिनको पांच सौ रुपया महीना मिल रहा है तो यह संख्या और ज्यादा हो जाती है।

कोरोना की वजह से महंगाई बढ़ी इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में पूरी दुनिया में 7.1 करोड़ गरीबों की संख्या बढ़ी, इसमें से 33 प्रतिशत यानी करीब 2.3 करोड़ गरीब भारत में बढ़े। हालांकि एक निजी कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी, सीएमआईई के मुताबिक एक साल में भारत में 5.6 करोड़ गरीब बढ़े। आंकड़ा कोई भी हो कोरोना की वजह से गरीबी बढ़ी है। साथ ही आर्थिक असमानता भी बढ़ी। देश की कुल संपत्ति में 50 प्रतिशत आबादी का हिस्सा महज तीन प्रतिशत रह गया, जबकि देश की 60 प्रतिशत संपत्ति महज पांच प्रतिशत लोगों के हाथ में पहुंच गई। 2012 से 2021 तक के आंकड़ों के आधार पर 2022 में आई रिपोर्ट के मुताबिक देश की 40 प्रतिशत संपत्ति सिर्फ एक प्रतिशत आबादी के पास है। भारत में 2020 में 102 अरबपति थे, जिनकी संख्या 2022 में 166 हो गई। यानी महामारी के दो साल में भारत में 64 अरबपति पैदा हो गए। भारत के एक सौ सबसे अमीर लोगों की संपत्ति 54.12 लाख करोड़ रुपए है। यह भारत सरकार के सालाना बजट से डेढ़ गुना ज्यादा है।

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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