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गपशप

विपक्षी एकता की परीक्षा भी

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पूर्वोत्तर के तीन छोटे राज्यों की राजनीति से विपक्षी एकता की परीक्षा होनी है। त्रिपुरा में कांग्रेस के साथ तालमेल की घोषणा खुद सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने की है। अब प्रद्योत देबबर्मा की पार्टी तिपरा मोथा से तालमेल की बात हो रही है। ममता बनर्जी ने भी अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के लिए त्रिपुरा में पार्टी खड़ी की है और इधर उधर के कुछ विधायक उनके साथ जुड़े भी लेकिन उनका अभियान फुस्स हो गया है। अगर वे आगे की राजनीति में भाजपा से लड़ने के विपक्षी अभियान में शामिल होना चाहती हैं तो उनको शुरुआत त्रिपुरा से ही करनी होगी। अगर वे लेफ्ट के साथ नहीं जा सकती हैं तो उनको त्रिपुरा में चुनाव से दूरी बनानी चाहिए। वे पश्चिम बंगाल की सत्ता में हैं और साधन संपन्न हैं। अगर वे पूरी ताकत से चुनाव  लड़ती हैं तो इससे सीपीएम गठबंधन को नुकसान होगा और भाजपा को फायदा होगा।

इसी तरह मेघालय में ममता बनर्जी ने पूरी कांग्रेस पार्टी को तोड़ दिया। कांग्रेस के 14 में से 13 विधायकों को उन्होंने तृणमूल कांग्रेस में शामिल कराया, जिससे तृणमूल कांग्रेस राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। अब उनकी पार्टी के विधायक भी पाला बदल कर मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा की पार्टी एनपीपी के साथ जा रहे हैं। सो, यह देखना दिलचस्प होगा कि त्रिपुरा में सीपीएम से तालमेल कर रही कांग्रेस पार्टी मेघालय में क्या करती है? मेघालय में पिछली बार कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थीं और कोनरेड संगमा की एनपीपी को 20 सीट मिली थी। भाजपा सिर्फ दो सीट जीत पाई थी। लेकिन जोड़ तोड़ के दम पर एनपीपी, यूडीपी, भाजपा और निर्दलियों की सरकार बन गई। बाद में कांग्रेस के कई विधायकों ने पार्टी छोड़ी और अंत में बचे हुए 14 में से 13 विधायक मुकुल संगमा के साथ तृणमूल में चले गए। पिछली बार कांग्रेस 28 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। अभी भाजपा से अलग होकर लड़ रहे कोनरेड संगमा मजबूत दिख रहे हैं लेकिन अगर कांग्रेस और तृणमूल तालमेल करके लड़ते हैं तो मेघालय में नतीजा अलग हो सकता है।

सबसे दिलचस्प चुनाव नगालैंड का होगा। वहां एनडीपीपी, एनपीएफ, भाजपा तीनों एक साथ हैं। पर एनपीएफ के नेता टीआर जेलियांग को पता है कि किस तरह से नेफ्यू रियो ने उनकी पार्टी को तोड़ा है। सो, यह देखना दिलचस्प होगा कि नगालैंड पीपुल्स पार्टी के नेता नेफ्यू रियो किस तरह से चुनाव लड़ते हैं और एनडीपीपी व भाजपा के बीच सीटों का तालमेल कैसा होता है। अगर एनडीपीपी और भाजपा तालमेल करते हैं तो भाजपा को कितनी सीटें मिलती हैं यह भी देखने वाली बात होगी। उसके 12 विधायक हैं, जबकि एनडीपीपी के 42 विधायक हैं। एनडीपीपी के लिए भाजपा को 12 से ज्यादा सीटें देने में मुश्किल आएगी। सो, तालमेल के रास्ते में एक बड़ी बाधा है। अगर सरकार में शामिल सभी पार्टियां अलग अलग लड़ती हैं तो कांग्रेस, जदयू, एनपीएफ आदि पार्टियों के साथ मिल कर लड़ने की संभावना है। बहरहाल, ये तीनों छोटे राज्य हैं, लेकिन अगर विपक्षी पार्टियां इन राज्यों में अपने अपने हितों के किनारे रख कर तालमेल कर लेती हैं तो आगे के चुनाव में भी विपक्ष के साथ आने की संभावना बनेगी।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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