Wednesday

16-07-2025 Vol 19

राजस्थान में लैला-मजनू की मजार, मोहब्बत का तीर्थ, जहां इश्क़ मांगता है मन्नत!

127 Views

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में स्थित अनूपगढ़ के समीप बिंजौर गांव की अंतर्राष्ट्रीय भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसी लैला-मजनू की मजार आज भी प्रेम की एक अमर गाथा सुनाती है।

राजस्थान की यह मजार उन दो आत्माओं की निशानी मानी जाती है, जिनका प्रेम हर सामाजिक बंदिशों से परे, आत्मिक और निष्कलंक था। यहां हर साल 11 जून से 15 जून तक एक विशेष मेला लगता है, जिसमें देशभर से हजारों की संख्या में नवविवाहित दंपती, प्रेमी जोड़े और श्रद्धालु शामिल होते हैं। वे यहां आकर अपने प्रेम की सफलता, जीवनभर साथ रहने और अटूट बंधन की मन्नतें मांगते हैं।

यह मजार केवल प्रेम का ही नहीं, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। राजस्थान का स्थान विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोगों को एक साथ जोड़ता है, जहां आस्था, प्रेम और मानवता के मूल मूल्य सर्वोपरि हैं। यह मजार पाकिस्तान की सीमा से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन इसकी पहुँच दिलों तक है।

मजार लगभग 400 साल पुरानी

इतिहासकारों भले ही लैला-मजनू की कहानी को एक काल्पनिक कथा मानते हों, लेकिन स्थानीय लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान पूरी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। इन प्रेमियों की समाधि को लेकर एक मान्यता यह भी है कि जब वे इस इलाके में भटकते हुए आए थे, तो प्रेम में प्राण त्याग दिए और यहीं एक साथ दफनाए गए। तभी से यह स्थल मजार का रूप ले चुका है।

राजस्थान के मेला कमेटी के अध्यक्ष प्रीतम सिंह, जो वर्ष 1962 से इस गांव में रह रहे हैं, के अनुसार यह मजार लगभग 400 साल पुरानी है। वे बताते हैं कि यहां तक कि जब घग्गर नदी में बाढ़ आती थी, तब भी मजार में पानी नहीं घुसता था, जिसे लोग एक दैवीय चमत्कार मानते हैं। मजार के प्रति ऐसी आस्था लोगों के प्रेम और विश्वास को और अधिक गहरा बना देती है।

आज राजस्थान की यह मजार उन सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुकी है जो सच्चे प्रेम में यकीन रखते हैं। यहां आने वाले हर व्यक्ति को यह मजार एक संदेश देती है—कि जब प्रेम सच्चा हो, तो वह समय, समाज, सीमाओं और मृत्यु से भी परे हो सकता है।

बिंजौर की यह मजार न केवल एक प्रेम कहानी की याद दिलाती है, बल्कि आज भी सैकड़ों दिलों को जोड़ने और आशा की लौ जलाए रखने का कार्य कर रही है।

मजार पर जलते दीपक और आस्था का चमत्कार

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के बिंजौर गांव में स्थित लैला-मजनू की मजार केवल एक प्रेम कहानी की निशानी नहीं, बल्कि गहरे विश्वास और चमत्कारों का केंद्र बन चुकी है।

राजस्थान में वर्ष 1965 में स्थानीय निवासी प्रीतम सिंह ने मजार के ऊपर अपने आप दो दीपक जलते हुए देखे थे, जो उनके लिए किसी दैवी संकेत से कम नहीं था। यह दृश्य उनके मन में इस मजार के प्रति आस्था की लौ और प्रज्वलित कर गया।

इसके बाद 1972 में घटे एक रहस्यमयी चमत्कार ने इस स्थान की मान्यता को और मजबूत किया। तब से यह मजार हर साल हजारों श्रद्धालुओं और प्रेमियों का केंद्र बन गई है। यहां आयोजित होने वाला मेला सिर्फ प्रेमियों का उत्सव नहीं है, बल्कि यह सभी धर्मों – हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई – के लोगों के लिए एक साझी आस्था का प्रतीक बन चुका है।

यहां नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए मन्नत मांगते हैं, वहीं प्रेम में असफल रहे लोग या विवाह की प्रतीक्षा में बैठे युवक-युवतियां अपनी दिली दुआओं के साथ मजार पर माथा टेकते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले 10 से 15 वर्षों में यहां आने वालों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। प्रेम, आस्था और चमत्कार की त्रिवेणी बन चुकी यह मजार आज एक ऐसा स्थल है, जहां हर दिल एक उम्मीद लेकर पहुंचता है।

लोगों को आकर्षित करता है मेला

एक समय था जब राजस्थान में मेला केवल स्थानीय लोगों तक सीमित था, लेकिन अब इसकी ख्याति देशभर में फैल चुकी है। दूर-दराज़ से लोग इस मेले का हिस्सा बनने आते हैं।

मेले के आयोजन के दौरान सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवानों द्वारा लोगों को पेयजल व अन्य जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

मेले की एक खास बात यहां आयोजित होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता है, जिसे मेला कमेटी द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें देशभर के पहलवान अपनी ताकत और कौशल का प्रदर्शन करते हैं। विजेताओं को मंच पर सम्मानित किया जाता है, जिससे प्रतियोगिता और भी रोमांचक बन जाती है और मेला जीवंत हो उठता है।

मनोरंजन के उद्देश्य से मेले में पंजाबी अखाड़ा भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पंजाब के लोकप्रिय कलाकार हिस्सा लेते हैं। एक कलाकार ने बताया कि वह पिछले पाँच वर्षों से लगातार इस मेले में निःशुल्क प्रस्तुति दे रहे हैं, ताकि आने वाले दर्शकों का मनोरंजन हो सके और मेला सांस्कृतिक रंगों से सराबोर हो जाए।

राजस्थान  का यह मेला न केवल श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक मेलजोल और मनोरंजन का अद्भुत संगम भी है।

also read: अनंत का द्वार केदारनाथ धाम, बंद मंदिर में भी जलता है आस्था का दीपक

pic credit- GROK 

Naya India

Naya India, A Hindi newspaper in India, was first printed on 16th May 2010. The beginning was independent – and produly continues to be- with no allegiance to any political party or corporate house. Started by Hari Shankar Vyas, a pioneering Journalist with more that 30 years experience, NAYA INDIA abides to the core principle of free and nonpartisan Journalism.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *