nayaindia Congress plenary session इरादों के दस्तावेज

इरादों के दस्तावेज

कांग्रेस ने नई औद्योगिक, व्यापार, पूंजी और श्रम नीति की बात की है। कांग्रेस अगर इस पक्ष मे है कि ये नीतियां फिर से राज्य तय करेगा, तो उसे पूरे नियोजन की बात करनी चाहिए।

कांग्रेस पार्टी ने अपने रायपुर महाधिवेशन में “देश को वर्तमान पीड़ा और अंधकार से मुक्त” कराने का संकल्प जताया। अपने राजनीतिक प्रस्ताव में पार्टी ने कहा कि ‘पार्टी को अपनी उस विचारधारा के बारे में पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए, जिसको लेकर पार्टी के पूर्वजों ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, अपनी जान की कुर्बानी दी, और लोकतंत्र को बचाए रखा। भारत के विचार का जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट उद्घोष किया है और कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद एवं संघीय व्यवस्था के पक्ष में खड़ी है।’ संभवतः लंबे समय बाद कांग्रेस के किसी दस्तावेज में समाजवाद शब्द आया है। लेकिन अगर आर्थिक प्रस्ताव पर गौर करें, तो वह वेल्फेयरिज्म (कल्याणकारी योजनाओं) की प्रचलित सोच से आगे नहीं जा पाया है। 1991 में अपनाई गई नई आर्थिक नीति की उपलब्धियों का पार्टी ने इसमें जिक्र किया है, लेकिन कहा है- ’30 वर्षों के बाद, हमारी राय है कि वैश्विक और घरेलू घटनाओं को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियों के पुनर्निर्धारण की जरूरत है।’

मगर यह बात यहीं ठहर गई है। पुनर्निर्धारण क्या और कैसा होगा, इसकी कोई दृष्टि इस दस्तावेज में नजर नहीं आई है। बाकी दस्तावेज में आर्थिक मोर्चे पर नरेंद्र मोदी सरकार की विफलताओं का विस्तार से जिक्र है और सुधार के तौर पर कुछ कार्यक्रमों या नीतियों का जहां-तहां उल्लेख हुआ है। लेकिन इससे नीतियों के पुनर्निर्धारण की दिशा नहीं दिखती। 1991 में सबसे बड़ा बुनियादी बदलाव आया, वह अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका के बारे में था। आज भी सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि अर्थव्यवस्था में राज्य की क्या भूमिका होनी चाहिए? कांग्रेस ने नई औद्योगिक, व्यापार, पूंजी और श्रम नीति की बात की है। ऐसी नीतियों को तय करने में 1991 में भारतीय राज्य ने अपनी भूमिका छोड़ दी थी। कांग्रेस अगर इस पक्ष मे है कि ये नीतियां फिर से राज्य तय करेगा, तो उसे पूरे नियोजन की बात करनी चाहिए। क्या वह फिर से योजना आयोग के गठन के पक्ष में है? ऐसी संस्था के बिना सकल आर्थिक नियोजन में राज्य की स्पष्ट भूमिका बनना लगभग नामुमकिन है। कांग्रेस ऐसे मुद्दों पर साफगोई से बच निकली है। इसीलिए उसका आर्थिक संकल्प आमजन में नया भरोसा पैदा नहीं कर पाएगा।

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