अर्जेंटीना ने एकतरफा तौर फॉकलैंड संबंधी करार को रद्द कर दिया है। अर्जेंटीना का कदम सीधे तौर पर ब्रिटेन को चुनौती है। लेकिन ब्रिटेन की इस पर प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत नरम ही रही है। जाहिर है, यह बनी नई विश्व परिस्थितियों का असर है।
अब तक दुनिया में समझौतों से एकतरफा ढंग से हटना पश्चिमी देशों (खास कर अमेरिका) का विशेषाधिकार समझा जाता था। लेकिन अभी पिछले महीने ही रूस ने परमाणु हथियारों के नियंत्रण की संधि न्यू स्टार्ट में अपनी भागीदारी को निलंबित करने का एकतरफा फैसला लिया। फिर ऐसा ही एक निर्णय अर्जेटीना ने ले लिया। अर्जेंटीना का कदम सीधे तौर पर ब्रिटेन को चुनौती है। लेकिन ब्रिटेन की इस पर प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत नरम ही रही है। जाहिर है, यह बनी नई परिस्थितियों का असर है। आलोचकों ने कहा है कि संकटग्रस्त ब्रिटेन को अब दुनिया में एक कमजोर देश के रूप में देखा जा रहा है। इसका लाभ अर्जेटीना ने उठाया है। अर्जेंटीना ने 2016 में फॉकलैंड द्वीपसमूहों को लेकर हुए करार को रद्द करने का फैसला किया है। फॉकलैंड को अर्जेंटीना में मालविनास द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है। ब्रिटेन ने साल 1833 में इन द्वीपों पर कब्जा कर लिया था, जिन पर हमेशा से अर्जेंटीना का दावा रहा है। 1982 में अर्जेंटीना ने इन द्वीपों पर जबरन कब्जा कर लिया था, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें अर्जेंटीना हार गया।
74 दिन तक चली उस लड़ाई में अर्जेंटीना के 649 और ब्रिटेन के 255 सैनिक मारे गए थे। 2016 में हुए समझौते में प्रावधान था कि दोनों देश द्वीप समूह की संप्रभुता पर अपनी राय-राय पर कायम रहते हुए भी ऊर्जा, जहाजरानी और मछली मारने जैसे कारोबार में सहयोग करेंगे। इस समझौते से हटने की औपचारिक जानकारी अर्जेंटीना के विदेश मंत्री सांतियागो केफियेरो ने ब्रिटिश विदेश मंत्री जेम्स क्लेवर्ली को पिछले हफ्ते नई दिल्ली में दी। ये दोनों मंत्री नई दिल्ली में हुई जी-20 देशों की विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए यहां आए थे। अब अर्जेंटीना सरकार ने मालविनास द्वीप समूह की संप्रभुता के बारे में बातचीत फिर शुरू करने की पेशकश ब्रिटेन के सामने रखी है। ब्रिटेन ने ऐसी बातचीत की संभावना को ठुकरा दिया है। क्लेवर्ली ने एक ट्विट में दावा किया कि फॉकलैंड द्वीपसमूह ब्रिटेन का हैं और वहां के बाशिंदे ब्रिटिश स्वशासित प्रदेश के रूप में रहने का निर्णय कर चुके हैँ।