जिस समय जर्मनी गहरे आर्थिक संकट में है, लागत पदार्थों की महंगाई ने उत्पादों को भी महंगा बना दिया है, और अनेक कंपनियां जर्मनी छोड़ कर अपने प्रोजेक्ट अमेरिका ले जा रही हैं, ऐसा लगता है कि जर्मन चांसलर शोल्ज ने भारत से उम्मीद जोड़ी।
यह साफ है कि जर्मनी के चांसलर ओलोफ शोल्ज भारत में सौदों की तलाश में आए थे। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिली, इसकी जानकारी तुरंत हासिल नहीं हो सकी है। लेकिन उनकी यात्रा के दौरान यह बात खूब चर्चित रही कि शोल्ज का मकसद अपने रक्षा उद्योग के लिए भारत से करार करना है। खास कर वे जर्मन पनडुब्बी भारत को बेचने के मकसद से आए थे। इस बारे में कोई साफ घोषणा तो नहीं हुई, लेकिन मीडिया में अनुमान लगाए गए कि अगर शोल्ज अपने मिशन में कामयाब रहे, तो जर्मन कंपनियों को सात अरब डॉलर का कारोबार मिल सकता है। जिस समय जर्मनी गहरे आर्थिक संकट में है, लागत पदार्थों की महंगाई ने उत्पादों को भी महंगा बना दिया है, और अनेक कंपनियां जर्मनी छोड़ कर अपने प्रोजेक्ट अमेरिका ले जा रही हैं, ऐसा लगता है कि शोल्ज ने भारत से उम्मीद जोड़ी। पश्चिमी मीडिया ने चीन विरोधी माहौल बनाने के क्रम में भारत को लेकर एक रूमानी छवि इस समय दुनिया में प्रचारित की हुई है।
ऐसा संकेत दिया गया है कि भारत इतने बड़े बाजार के रूप में उभरेगा कि वह पश्चिमी अर्थव्यवस्था को संभाल लेगा। तो शोल्ज भारत के लिए कुछ प्रस्ताव लेकर आए। इनमें एक यह है कि जर्मनी भारतीय आईटी इंजीनियरों के लिए अपने यहां आना आसान करेगा। सूचना प्रौद्योगिकी के जानकार कुशल कामगारों के लिए जर्मनी का वीजा पाना और आसान बनाया जाएगा और वे अपने परिवारों को भी ले जा सकेंगे। भारत यात्रा के दूसरे दिन शोल्ज बेंगलुरू में एक कार्यक्रम में शामिल हुए, जहां इस संबंध में घोषणा की। उसके बाद बताया गया कि अब जर्मनी का वीजा पाने के लिए जर्मन भाषा की जानकारी के नियम को आसान किया जा सकता है। जर्मन विशेषज्ञों ने कहा है कि जर्मनी भारत के साथ व्यापार और सामरिक रिश्ते मजबूत करने को उत्सुक है, ताकि उसे जर्मनी पर निर्भरता से मुक्ति मिल सके। फिलहाल, जर्मनी भारत में नौवां सबसे बड़ा निवेशक है। अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 के बीच उसने भारत में करीब 14 अरब डॉलर का निवेश भारत में किया है।