Thursday

31-07-2025 Vol 19

हिंदी कैसे बने विश्वभाषा?

1573 Views

दस जनवरी विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मैं अपने विचार व्यक्त करूं, इससे बेहतर यह होगा कि हमारे भारतीय और विदेशी महापुरूषों और विद्वानों द्वारा हिंदी के बारे में जो कुछ कहा गया है, उसे संक्षेप में आपके लिए प्रस्तुत कर दूं।

हिन्दी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। मेरी आँखें उस दिन को देखने के लिए तरस रही हैं जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक ही भाषा को समझने और बोलने लगेंगे। (महर्षि दयानन्द सरस्वती)

यदि मैं तानाशाह होता तो आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा दिया जाना बंद कर देता। सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएं अपनाने को मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते उन्हें बरखास्त कर देता। मैं पाठ्य पुस्तकों के तैयार किए जाने का इन्तज़ार न करता। अंग्रेजी को हम गालियाँ देते हैं कि उन्होंने हिन्दुस्तान को गुलाम बनाया, लेकिन उनकी अंग्रेजी भाषा के तो हम अभी तक गुलाम बने बैठे हैं । (महात्मा गांधी)

हिन्दी में, मैं इसलिए लिखता और प्रवचन देता हूँ क्योंकि इस भाषा में विचारों को स्पष्टतः से सामने लाने की अद्भुत क्षमता है। मैं तो चाहता हूं कि देवनागरी लिपि में ही देश की सब भाषाएँ लिखी जायें। इससे दूसरी भाषाएं सीखना आसान हो जाएगा। …केवल अंग्रेजी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है, उतने श्रम में हिन्दुस्तान की सभी भाषाएं सीखी जा सकती हैं। …..मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूं परंतु मेरे देश में हिन्दी की इज्जत न हो, ये मैं नहीं सह सकता। (संत विनोबा भावे)

जब एक बार शराब पीने की आदत पड़ जाती है तो किसी न किसी रूप में कानून का सहारा लेना पड़ता है। आज अंग्रेजी शराब से भी ज्यादा नुकसान कर रही है और अंग्रेजीबन्दी शराबबन्दी से भी ज़्यादा ज़रूरी है। (डॉ. राममनोहर लोहिया)

जब तक भारतीय संसद के वाद-विवाद अंग्रेजी में चलते रहेंगे, देश की राजनीति का जनता से कोई सरोकार नहीं होगा और वह एक छोटे से वर्ग की बपौती बनकर रह जाएगी। (गुन्नार मिर्डल,स्वीडन के प्रसिद्ध समाजशास्त्री)

विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा किसी सभ्य देश में प्रदान नहीं की जाती। विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से छात्रों का मन विकारग्रस्त हो जाता है और वे अपने ही देश में परदेशी के समान मालूम पड़ते हैं। (रवीन्द्रनाथ टैगोर)

भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। उस भाषाओं के बीच में अंग्रेजी कैसे सम्पर्क भाषा बन सकती है, क्या दिल्ली का रास्ता लंदन से होकर गुजरता है, अंग्रेजी अलगाव पैदा करती है- जनता और नेता के बीच, राजा और प्रजा के बीच। अंग्रेजी हटेगी तो उत्तर भारत के लोग भी दक्षिण की भाषा सीखेंगे। (आलफंस वातवेल,हालैंड)

वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *