nayaindia दुबई में लोग चाहते है भारत पहल करें!

दुबई में लोग चाहते है भारत पहल करें!

दुबई के इस चार दिन के प्रवास में मेरा कुछ समय तो समारोहों में बीत गया लेकिन शेष समय कुछ खास-खास लोगों से मिलने में बीता। अनेक भारतीयों, अफगानों, पाकिस्तानियों, ईरानियों, नेपालियों, रूसियों और कई अरब शेखों से खुलकर संवाद हुआ। इस संवाद से पहली बात तो मुझे यह पता चली कि दुबई के हमारे प्रवासी भारतीयों में भारत की विदेश नीति का बहुत सम्मान है। हम लोग नरेंद्र मोदी और विदेश नीति की कई बार दिल्ली में कटु आलोचनाएं भी सुनते हैं लेकिन यहां तो उसका असीम सम्मान है।

संयुक्त अरब अमारात के टीवी चैनलों और अखबारों का स्वर भी इस राय से काफी मिलता-जुलता है। पड़ौसी देशों के प्रमुख लोगों ने, इधर मैं जो दक्षिण और मध्य एशिया के 16 देशों का जन-दक्षेस नामक नया संगठन खड़ा कर रहा हूँ, उसमें भी पूर्ण सहयोग का इरादा प्रकट किया है। मुझे यह जानकर और भी अच्छा लगा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ प्रमुख लोगों ने भारत द्वारा काबुल को प्रेषित 50 हजार टन अनाज और दवाइयों की पहल की बहुत तारीफ की।

उनका सुझाव यह भी था कि इस संकट के वक्त यदि भारत पाकिस्तान की मदद के लिए हाथ बढ़ा दे तो पाकिस्तान की जनता मोदी की मुरीद हो जाएगी। यदि शाहबाज़ शरीफ और फौज मोदी की दरियादिली को नकार दें तो उनकी काफी किरकिरी हो सकती है। इसी प्रकार कई प्रमुख अफगान नेताओं ने मुझसे सुदीर्घ वार्ताओं में कहा कि वे भारत सरकार द्वारा दी गई मदद से तो अभिभूत हैं ही, लेकिन वे ऐसा मानते हैं कि अफगानिस्तान की अस्थिरता को यदि कोई मुल्क खत्म कर सकता है तो सिर्फ भारत ही कर सकता है।

अमेरिका और रूस ने अफगानिस्तान में फौजें भेजकर देख लिया, करोड़ों रूबल और डाॅलर उन्होंने वहां बहा दिए और बड़े बेआबरू होकर वे वहां से निकले। उनका मानना है कि अकेला भारत अगर पहल करे और अमेरिका के जो बाइडन या कमला हैरिस और ब्रिटेन के ऋषि सुनाक को अपने साथ जोड़ ले तो अफगानिस्तान में शांति और व्यवस्था कायम हो सकती है।

इन तीनों राष्ट्रों की संयुक्त पहल को मानने से न तो तालिबान इन्कार कर सकते हैं, न ही पूर्व अफगान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री और न ही पाकिस्तान! यूक्रेन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डाॅ. जयशंकर ने जैसा संतुलित रवैया अपनाया है, उसने विश्व राजनीति में भारत की छवि को चमका दिया है। इसी चमक का इस्तेमाल वह अपने पड़ौस के अंधेरे को दूर करने में क्यों न करे?

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By वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

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