नई तकनीक इमारतों या इंसानी बस्तियों पर बिजली गिरने से होने वाले नुकसान को रोकने में मददगार हो सकती है। इस प्रयोग को आसमान से गिरने वाली बिजली से बचाव की दिशा में एक बड़ी प्रगति समझा गया है।
भारत में हर साल सैकड़ों लोग बिजली गिरने से मर जाते हैं। पिछले साल आई खबरों के मुताबिक इस कारण नौ सौ से अधिक मौतें हुईं। अब वैज्ञानिकों का एक ऐसा प्रयोग सफल रहा है, जिससे ऐसी मौतों को रोकने की संभावना पैदा हुई है। स्विट्जरलैंड में एक प्रयोग करके वैज्ञानिकों ने गिरती बिजली का रास्ता मोड़ दिया। जाहिर है, यह तकनीक इमारतों या इंसानी बस्तियों पर बिजली गिरने से होने वाले नुकसान को रोकने में मददगार हो सकती है। इस प्रयोग को आसमान से गिरने वाली बिजली से बचाव की दिशा में एक बड़ी प्रगति समझा गया है। साल 1750 में वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपना पतंग वाला मशहूर प्रयोग किया था, जिससे लाइटनिंग रॉड यानी बिजली गिरने से बचाने वाली छड़ बनाने में सफलता मिली थी। तब उन्होंने एक पंतग में चाबी बांधकर तूफान में उड़ाया था। वैज्ञानिकों ने उस खोज को बेहतर बनाने की दिशा में अब जाकर कुछ ठोस कदम बढ़ाए हैं।
लेजर की मदद से वैज्ञानिकों ने गिरती बिजली का रास्ता मोड़ने में कामयाबी हासिल की है। इसी हफ्ते उन्होंने इसका एलान किया। उन्होंने बताया कि उत्तर-पूर्वी स्विट्जरलैंड में माउंट सांतिस की चोटी से उन्होंने आसमान की ओर लेजर फेंकी और गिरती बिजली को मोड़ दिया। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस तकनीक में और ज्यादा सुधार के बाद इसे अहम इमारतों की सुरक्षा में लगाया जा सकता है और बिजली गिरने से स्टेशनों, हवाई अड्डों, विंड फार्मों और ऐसी ही जरूरी इमारतों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसका फायदा ना सिर्फ भवनों को होगा बल्कि संचार साधनों और बिजली की लाइनों जैसी अहम सुविधाओं की सुरक्षा के साथ-साथ हर साल हजारों लोगों की जान भी बचाई जा सकेगी। कुदरती बिजली में बहुत अधिक वोल्टेज वाला इलेक्ट्रिक करंट होता है। यह जो बादल और धरती के बीच बहता है। अब वैज्ञानिकों ने कहा है कि बेहद तीक्ष्ण लेजर से इसके रास्ते में प्लाज्मा के लंबे कॉलम बनाया जा सकता है। ये कॉलम इलेक्ट्रॉन, आयन और गर्म हवा के अणुओं से बनते हैं और आसमान से गिरने वाली बिजली की दिशा मोड़ देने में सक्षम होते हैँ।