nayaindia adulterers मिलावटखोरों को सजा ऐसी हो

मिलावटखोरों को सजा ऐसी हो

हमारी दो दवा-निर्माता कंपनियों के कारनामों से सारी दुनिया में भारत की बदनामी हो रही है। इस बदनामी से भी ज्यादा दर्दनाक बात यह है कि इन दोनों कंपनियों- मेडेन फार्मा और मेरियन बायोटेक- की दवाइयों से गांबिया में 60 बच्चों और उजबेकिस्तान में 16 बच्चों की मौत हो गई। जब पहले-पहल ये खबरें मैंने अखबारों में देखी तो मैं दंग रह गया। मुझे लगा कि भारत से अरबों रु. की दवाइयों का जो निर्यात हर साल होता है, उस पर इन घटनाओं का काफी बुरा असर पड़ेगा।

भारत की प्रामाणिक दवाइयों पर भी विदेशियों के मन में संदेह पैदा हो जाएगा। हमारी दवाएं अमेरिका और यूरोप की तुलना में बहुत सस्ती होती हैं। मुझे यह भी लगा कि इस मामले ने यदि तूल पकड़ लिया तो एशिया और अफ्रीका के जिन गरीब मरीजों की सेवा इन दवाइयों से होती हैं, अब वे वंचित हो जाएंगे। हो सकता है कि गांबिया और उजबेकिस्तान के उन बच्चों की मौत का कारण कुछ और रहा हो।

लगभग दो माह पहले जब ये खबरें आईं तो यह भी अपुष्ट सूत्रों ने कहा कि इन दवाइयों के नमूनों की जांच यहीं की गई है और वे ठीक पाई गई हैं लेकिन इन देशों के जाँच कर्ताओं ने अब जांच पूरी होने पर कहा है कि इन दवाइयों में कुछ नकली और हानिकर तरलों को मिला देने के कारण ही ये जानलेवा बन गई थीं। इस निष्कर्ष की पुष्टि अब एक अमेरिका की एक जांच कंपनी ने भी कर दी है।

भारत सरकार ने इन कंपनियों के खिलाफ पुलिस में रपट लिखवा दी है और उनके कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार भी कर लिया है लेकिन दोनों कंपनियों के मालिक और वरिष्ठ प्रबंधक फरार हैं। यदि उनको विश्वास है कि उनकी दवाइयों में कोई मिलावट नहीं की गई है तो उन्हें डरने की जरूरत क्या है? यह भी हो सकता है कि मालिकों और मेनेजरों की जानकारी के बिना भी मिलावट की गई होगी।

यदि ऐसा है तो उन कर्मचारियों को कठोरतम सजा दी जानी चाहिए और यदि मालिक और प्रबंधक भी इस जानलेवा मिलावटखोरी के लिए जिम्मेदार हैं तो उनकी सजा तो और भी सख्त होनी चाहिए। इन लोगों पर दस-बीस लाख या करोड़ रु. का जुर्माना बेमतलब होगा। इन सबको 76 बच्चों की सामूहिक हत्या का जिम्मेदार मानकर इनकी सजा भी इतनी भयंकर होनी चाहिए कि भावी मिलावटखोरों की नींद हराम हो जाए।

यह सजा जल्दी से जल्दी दी जानी चाहिए ताकि आम लोगों को पता चले कि किस कुकर्म के लिए उन्हें दंडित किया गया है। उन्हें जेल के बंद दरवाजों के पीछे नहीं, चौराहों पर लटकाया जाना चाहिए और हर टीवी चैनल पर उसका जीवंत प्रसारण किया जाना चाहिए। उसके बाद आप देखेंगे कि देश में किसी भी तरह के मिलावटखोर आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे।

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By वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

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