नई दिल्ली। बलात्कार के प्रयास और बलात्कार की तैयारी के बीच अंतर बताने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस राम मनोहर मिश्र के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बेहद असंवेदनशील बताया है। इस फैसले में हाई कोर्ट के जज जस्टिस मिश्रा ने कहा था कि नाबालिग लड़की के निजी अंगों को पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं है।
जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की बेंच ने बुधवार को इस मामले पर सुनवाई की। अदालत ने स्वतः संज्ञान लेकर मामला सुना है। बेंच ने कहा, ‘हाई कोर्ट के ऑर्डर में की गई कुछ टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय नजरिया दिखाती हैं’। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मामला है और जिस जज ने यह फैसला दिया, उसकी तरफ से बहुत असंवेदनशीलता दिखाई गई। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी’।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह से सही है। कुछ फैसलों को रोकने के कारण होते हैं’। एक दिन पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर खुद सुनवाई करने का फैसला किया था। इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। हालांकि, पहले इसी केस पर दायर एक याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था। इस याचिका में फैसले के विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई थी।