नई दिल्ली। अमेरिका के साथ चल रहे टैरिफ विवाद में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि किसी के दवाब में व्यापार संधि नहीं होनी चाहिए। उन्होंने स्वदेशी के इस्तेमाल पर भी जोर दिया और कहा कि स्वदेशी अपनाने का मतलब किसी का विरोध करना नहीं हैं। आरएसएस के शताब्दी समारोह से जुड़े तीन दिन के कार्यक्रम के दूसरे दिन बुधवार को मोहन भागवत ने ने यह भी कहा कि संघ ने सबसे ज्यादा विरोध झेला है।
उन्होंने कहा, ‘जितना विरोध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हुआ है, उतना किसी भी संगठन का नहीं हुआ। इसके बावजूद स्वयंसेवकों के मन में समाज के प्रति शुद्ध सात्विक प्रेम ही है। इसी प्रेम के कारण अब हमारे विरोध की धार कम हो गई है’। अमेरिका के साथ चल रहे टैरिफ विवाद के बीच उन्होंने कहा, ‘आत्मनिर्भरता जरूरी है, देश आत्मनिर्भर होना चाहिए। स्वदेशी चीजों का मतलब विदेशों से संबंध तोड़ना नहीं है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार तो चलेगा, लेन देन होगा। लेकिन किसी के दबाव में नहीं होगा’।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा, ‘नेक लोगों से दोस्ती करें, उन लोगों को नजरअंदाज करें जो नेक काम नहीं करते। अच्छे कामों की सराहना करें, भले ही वे विरोधियों द्वारा किए गए हों। गलत काम करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं, बल्कि करुणा दिखाएं। संघ में कोई प्रोत्साहन नहीं, बल्कि कई हतोत्साहन हैं। स्वयंसेवकों के लिए कोई इंसेंटिव नहीं मिलता’। भागवत ने कहा, ‘लोग जब पूछते हैं कि संघ में आकर क्या मिलेगा तो हमारा जवाब होता है कि कुछ नहीं मिलेगा जो तुम्हारे पास है वो भी चला जाएगा। यहां हिम्मत वालों का काम है। इसके बाद भी स्वयंसेवक काम कर रहे हैं क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा करने के बाद उन्हें जो सार्थकता मिलती है उसका आनंद अलग होता है’। गौरतलब है कि इस साल दो अक्टूबर को विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होंगे।