नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली मामले में संसद की विशेषाधिकार समिति की ओर से शुरू की गई कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया। गौरतलब है कि सांसदों से कथित दुर्व्यवहार की शिकायत पर संसद की विशेषाधिकार समिति ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और संबंधित जिले के कलेक्टर, एसपी, थानाध्यक्ष आदि को तलब किया था।
विशेषाधिकार समित की इस कार्रवाई के खिलाफ राज्य सरकार सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। उसने संसद की विशेषाधिकार समिति के नोटिस को चुनौती दी थी। गौरतलब है कि पिछले दिनों संदेशखाली में हिंसा और महिलाओं के यौन शोषण के आरोप लगे तो भाजपा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजुमदार सहित कुछ अन्य नेताओं ने वहां जाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया था। इस दौरान हुई झड़प में मजूमदार के घायल होने की खबर आई थी। इसी मामले में विशेषाधिकार समिति ने अधिकारियों को 19 फरवरी को तलब किया था।
प्रियंका राज्यसभा नहीं मिलने से नाराज?
समिति के आदेश को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए थे। सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक गतिविधि कभी भी प्रिविलेज कमेटी के लिए सुनवाई का आधार नहीं होती है। इस मामले की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की। सरकार की ओर सिब्बल ने कहा- घटना के वक्त मुख्य सचिव, डीएम और पुलिस कमिश्नर मौके पर मौजूद नहीं थे। इसके बावजूद कमेटी ने उन्हें तलब किया। सिंघवी ने बताया कि इस तरह का एक मामला झारखंड में भी सामने आया था, जहां अदालत द्वारा राहत दी गई थी।
बसपा अब पूरी तरह से अकेले
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और तीन अन्य अधिकारियों ने संदेशखाली में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान बीजेपी सांसद सुकांत मजूमदार के खिलाफ कथित दुर्व्यवहार पर लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी विशेषाधिकार हनन नोटिस को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने प्राथमिकता से सुनवाई की थी क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने पीठ को बताया था कि उन्हें सुबह साढ़े 10 बजे लोकसभा में पेश होना है।