नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने ही एक फैसले की ऐतिहासिक भूल को सुधार दिया है। सात जजों की बेंच ने 26 साल पहले पांच जजों की बेंच के बहुमत से दिए फैसले को पलट दिया है और कहा है कि संसद में सांसदों को विशेषाधिकार हैं लेकिन उनको रिश्वते लेने की छूट नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अगर नोट लेकर सदन में वोट दिया या नोट लेकर सवाल पूछे तो भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा। यानी संदन के अंदर किसी काम के लिए रिश्वत लेने पर संसदीय विशेषाधिकार नहीं लागू होगा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा- हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट दी गई थी।
गौरतलब है कि 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन-दो के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। उससे बड़ी संविधान पीठ ने फैसले को पलटते हुए कहा है- अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त सांसद घूस स्वीकार करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने अहम फैसले में कहा- संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 सदन के अंदर बहस और विचार विमर्श का माहौल बनाए रखने के लिए हैं। दोनों अनुच्छेद का मकसद तब बेमानी हो जाता है, जब कोई सदस्य घूस लेकर सदन में वोट देने या खास तरीके से बोलने के लिए प्रेरित होता है। अदालत ने कहा है- अनुच्छेद 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट हासिल नहीं है। रिश्वत लेने वाला आपराधिक काम में शामिल होता है। ऐसा करना सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए जरूरत की श्रेणी में नहीं आता है।
सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा- सांसदों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देती है। हमारा मानना है कि संसदीय विशेषाधिकारों के तहत रिश्वतखोरी को संरक्षण हासिल नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में नोट लेकर वोट देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा- स्वागतम! सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला जो स्वच्छ राजनीति तय करेगा और व्यवस्था में लोगों का विश्वास गहरा करेगा। इससे पहले सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में जेएमएम विधायक सीता सोरेन का पक्ष रखा। गौरतलब है कि यह मामला 2012 के राज्यसभा चुनाव में सीता सोरेन के कथित तौर पर पैसे लेकर वोट डालने से जुड़ा था। उन्होंने संसदीय विशेषाधिकार के आधार पर मुकदमे से बचने के लिए अदालत में याचिका दायर की थी।