nayaindia Economy of 5 trillion पांच खरब डॉलर और पांच किलो अनाज!

पांच खरब डॉलर और पांच किलो अनाज!

भारतीय राजनीति का यह ‘टके सेर भाजी, टके सेर खाजा’ वाला काल है। इसमें एक सांस में देश को पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का दावा किया जाता है और उसी सांस में 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देने की घोषणा भी की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि अपने तीसरे कार्यकाल में वे भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना देंगे। दावा किया गया है कि 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था का आकार पांच ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। उस समय भारत के आगे सिर्फ अमेरिका और चीन होंगे। ब्रिटेन को भारत पीछे छोड़ चुका है और 2027 तक जापान और जर्मनी को भी पीछे छोड़ कर तीसरे नंबर पर वह होगा। इतना ही नहीं पांच राज्यों के चुनाव में अचानक यह फर्जी खबर भी चली कि भारत की अर्थव्यवस्था अब चार खरब डॉलर की हो गई है। एक केंद्रीय मंत्री, भाजपा के एक उपमुख्यमंत्री, भाजपा की एक विधायक और देश के नंबर दो उद्योगपति ने इस झूठी खबर का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया। हालांकि बाद में इसे डिलीट कर दिया।

बहरहाल, 2027 तक पांच खबर डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का दावा करने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह ऐलान किया कि अगले पांच साल तक 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज मिलता रहेगा। प्रधानमंत्री ने इसका ऐलान छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान किया। कोरोना के समय शुरू हुई यह योजना तीन महीने, चार महीने या छह महीने के लिए बढ़ाई जाती थी। इस बार प्रधानमंत्री ने एक बार में पांच साल तक इसे बढ़ाने का ऐलान किया है। उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि 2029 तक लोगों को मुफ्त में पांच किलो अनाज मिलता रहेगा। सोचें, इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अगले साल जो लोकसभा चुनाव होना है उसके लिए तो लोग निश्चिंत रहे ही, उसके अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक के लिए निश्चिंत रहें। उन्हें पांच किलो अनाज मिलता रहेगा। इसके लिए उन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ भाजपा को वोट देते रहना है।

सवाल है कि देश की अर्थव्यवस्था जब 2027 में पांच खरब डॉलर की होकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी हो जाएगी तो तब भी क्या 80 करोड़ लोगों की स्थिति पांच किलो अनाज पर पलने वाली ही रहेगी? क्या अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने का उनको कोई लाभ नहीं मिलेगा? अगर उनको कोई लाभ नहीं होगा तो ऐसी विशाल अर्थव्यवस्था का क्या मतलब रह जाएगा? लेकिन दुर्भाग्य से भारत में ऐसा लोकतंत्र है, जिसमें नेताओं का एकतरफा संवाद होता है। उनको जो मन में आता है वह बोलते हैं और उस पर कोई सवाल नहीं पूछा जाता है। जबकि लोगों को पूछना चाहिए कि 140 करोड़ की आबादी वाले भारत का पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना कौन सी बड़ी बात है? और दूसरा सवाल यह है कि मुफ्त में पांच किलो अनाज लेने वालों का इस अर्थव्यवस्था में क्या हिस्सा होगा?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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