nayaindia five state assembly election सोचे, क्या यह मनुष्य विकास है?

सोचे, क्या यह मनुष्य विकास है?

चुनाव

इसके अलावा चुनाव के समय जो नकदी बंटती है वह अलग है। अभी तक पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में करीब दो हजार करोड़ रुपए की नकदी, शराब और दूसरी चीजें पकड़ी गई हैं। जब दो हजार करोड़ रुपए नकद और सामान पकड़े गए हैं तो इससे 10 गुना जरूर बंटे होंगे। चुनाव के समय ऐसे लाभार्थियों का एक नया समूह बनता है। कुल मिला कर एक छोटा सा वर्ग है, जो अपनी सामाजिक नैतिकता और महत्वाकांक्षा के लिए काम , परिश्रम, पुरषार्थ करता है या काम करना चाहता है। लोग पूछते हैं कि भारत में महंगाई को लेकर लोगों में नाराजगी क्यों नहीं दिखती है या बेरोजगारी को लेकर क्यों नाराजगी नहीं है तो उसका कारण यह है कि महंगाई, बेरोजगारी या कम आय को लेकर जिस वर्ग में नाराजगी हो सकती है वह बहुत छोटा है। उसमें भी एक बड़े वर्ग को धर्म की अफीम चटा दी गई है। मुसलमानों से खतरा पैंठा दिया गया।

तो बड़ा और बहुसंख्यक वर्ग ऐसा है, जो महंगाई और बेरोजगारी से अप्रभावित है। यह देश की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी है। इसमें से बड़ा समूह जाति निरपेक्ष है। उसमें से आधे लोग भी जिसे वोट दे दें उसकी सरकार बन जाएगी। आधे से कम भी दें और उसमें मध्य वर्ग के वोट का एक हिस्सा जुट जाए तब भी सरकार बन जाएगी। तभी किसी भी पार्टी को कोई काम करने, रोडमैप बनाने, विजन दिखाने, देश का विकास करने की भला क्या जरूरत है? हालांकि ऐसा नहीं है कि काम नहीं होते हैं। बुनियादी ढांचे के भी काम होते हैं लेकिन उनका मकसद दूसरा होता है। उससे जनता की भी भलाई हो जाए तो वह उसकी किस्मत है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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