five state assembly election

  • विपक्ष अभी भी भाजपा की ताकत को समझा नहीं!

    अगर विपक्ष ऐसे ही टोने-टोटकों और जोड़-तोड़ के समीकरणों के भरोसे बैठा रहा, तो कहा जा सकता है कि 2024 और उसके आगे भी आम चुनावों में उसका कोई भविष्य नहीं है। अगर वह अपना भविष्य बनाना चाहता है, तो उसे राजनीति की नई परिकल्पना करनी होगी- राजनीति क्या है इसकी एक नई समझ बनानी होगी। नई राजनीति नए तौर-तरीकों से ही की जा सकती है। इसलिए ऐसे तौर-तरीके ढूंढने होंगे।लेकिन ऐसा इलीट कल्चर (अभिजात्य संस्कृति) में जीते हुए करना असंभव है। यह एक श्रमसाध्य राजनीति है, जिसके लिए कम से कम आज का विपक्ष तो तैयार नहीं दिखता।  ...

  • इन नतीजों के अच्छे अर्थ!

    विधानसभा चुनाव 2023 कई कारणों से याद रहेगा। पहली बात कांग्रेस पागल होने से बच गई। पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि यदि कांग्रेस उम्मीद अनुसार जीती तो कहीं पागल न हो जाए। कल्पना करें तेलंगाना के साथ छतीसगढ़, मध्य प्रदेश में कांग्रेस जीत जाती तो क्या कांग्रेसियों का अहंकार नहीं बढ़ता? राहुल गांधी इसका श्रेय क्या अपने ओबीसी राग को नहीं देते?  तब जातीय जनगणना, ओबीसी राजनीति को पंख लगते। कांग्रेस के नेता इंडिया गठबंधन की बाकी पार्टियों को कुछ नहीं समझते। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं में दस तरह के मनमुटाव बनते। कांग्रेस और विपक्ष भाजपा की...

  • विपक्ष को समझने का मौका!

    कांग्रेस ने ढर्रे पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस मुख्यालय एआईसीसी ने भूपेश बघेल, अशोक गहलोत, कमलनाथ को चुनाव लड़ने का ठेका दिया। इन नेताओं ने फिर सर्वे-मार्केटिंग कंपनियों को ठेका दिया। इन सबने अरविंद केजरीवाल तथा नरेंद्र मोदी की रेवड़ियों की नकल पर गारंटियां बनाईं। राहुल गांधी ने पिछड़ों की राजनीति, जाति जनगणना के एक जुमले से कांग्रेस की आत्मघाती नई आईडेंटिटी बनाई। यह आत्मविश्वास पाला कि इसके बूते कांग्रेस अकेले चुनाव जीत लेगी। अंत में नतीजा?  कांग्रेस चारों खाने चित है। न कांग्रेस को समझ आ रहा है और न इंडिया एलायंस को कि आगे कैसे लोकसभा चुनाव लड़े? उस...

  • लाख टके का सवाल लड़ना कैसे है?

    उत्तर भारत के तीन राज्यों के चुनाव नतीजे विपक्ष के लिए चेतावनी की घंटी है। चाहे बिहार में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हों या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव हों। सब यह मान कर बैठे थे कि उनको भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति की काट मिल गई है। सब मान रहे थे कि जाति गणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा इतना बड़ा है कि अब कुछ और सोचने की जरूरत नहीं है। मई में कर्नाटक के नतीजों की कांग्रेस ने भी इसी अंदाज में व्याख्या की। सिर्फ कांग्रेस नहीं तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके को भी...

  • जनता ने जिंदा रखा है

    एक फिल्मी डायलॉग के हिसाब से भारतीय राजनीति के बारे में कहा जाता है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को नरेंद्र मोदी और अमित शाह जीने नहीं दे रहे हें और जनता मरने नहीं दे रही है। इस बार पांच राज्यों के चुनाव में भी यह दिखा कि जनता ने कांग्रेस को जीत नहीं दिलाई लेकिन मरने भी नहीं दिया। कांग्रेस पांच में चार राज्यों में चुनाव हार गई। वह सिर्फ एक तेलंगाना में चुनाव जीती। नया राज्य बनने के बाद हुए तीसरे चुनाव में पहली बार कांग्रेस जीती और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। कांग्रेस हिंदी पट्टी के...

  • कांग्रेस को कांग्रेसी नेताओं ने मारा

    पूरे पांच साल गहलोत औरपायलट लड़ते रहे।...गहलोत तो वैसे भी जब भी मुख्यमंत्री बने हैं कभी बात नहीं करते। हार कर वापस आने के बाद ही मिलते हैं। इसलिए उनका पांच साल तक नहीं मिलना कोई नई बात नहीं है। वह तो एक प्रसंग आ गया तो उनका नाम लिख दिया। नहीं तो कांग्रेस में अधिकांश नेता ऐसे हैं जो पावर में रहते हुए चाहे वह सरकार का हो या संगठन का कभी बात नहीं करते। अपने अहंकार को वे अपना बड़प्पन समझते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि वे कितने छोटे होते चले जा रहे हैं। कांग्रेस हार...

  • कांग्रेस आपा खोएगी या भाजपा?

    लाख टके का सवाल है कि कांग्रेस का जीत के बाद गुब्बारा कितना फूलेगा और वह फिर कितनी जल्दी फटेगा तो मोदी-शाह आत्मविश्वासी बनेंगे या घबरा कर हताशा में विपक्ष पर टूट पड़ेंगे? कांग्रेस का मसला अहम है। क्योंकि कांग्रेस की समझदारी पर ही आगे लोकसभा चुनाव के नतीजे आने है। तीन दिसंबर को कांग्रेस की जीत मामूली नहीं होंगी। और इसका मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा और इनके सलाहकारों पर मनोवैज्ञानिक गहरा असर होगा। अति आत्मविश्वास में कांग्रेस नेता पगला सकते हैं। शायद मान बैठें कि राहुल के कारण जीत है। इसलिए लोकसभा चुनाव में हमें...

  • पाँच राज्यों के चुनाव: कई संभावनाएँ, कई सवाल…?

    भोपाल। आज तेलंगाना में मतदान सम्पन्न होने के साथ ही पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों का यह दौर समाप्त हो गया है, अब पांच राज्यों के ही नहीं पूरे देश के मतदाताओं व राजनीतिक दलों को इन चुनावों के परिणामों का बेसब्री से इंतजार है, चूंकि कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इन चुनावों को एक सौ दिन बाद होने वाले लोकसभा चुनावों का ‘सेमीफायनल’ मान रहे है, इसलिए देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके सर्वोच्च नेता भी इन चुनावों के परिणामों के प्रति काफी उत्सुक है, इन पांच राज्यों के चुनावों के प्रति क्षेत्रीय दलों के साथ दोनों राष्ट्रªीय...

  • मोदी का मकसद, कांग्रेस चुनौती न बने!

    भाजपा ने क्यों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इतनी ताकत झोंकी? लोकसभा चुनाव से ठीक पहले क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने को इस तरह दांव पर लगाया? क्यों मोदी और अमित शाह दोनों ने इन चुनावों को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है? क्यों ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीतने की कोशिश हो रही है? आखिर पांच साल पहले भी तो इन राज्यों के चुनाव हुए थे और  उनमें भी भाजपा हार गई थी, लेकिन उसके बाद लोकसभा चुनाव में पहले से ज्यादा सीटों के साथ जीती फिर इस बार इतनी चिंता करने की क्या जरूरत है? क्या भाजपा को...

  • चुनावः पांच साला खरीद-फरोख्त मंडी!

    उफ! आजादी का कथित अमृत काल। और उसमें मतदाताओं की चौड़े-धाड़े खरीद-फरोख्त! सतह और सतह से नीचे दोनों स्तरों पर। जिसे मानना हो माने कि ये रेवड़ियां, ये गारंटियां जनकल्याण हैं, विकास हैं लेकिन  असलियत में यह सब पिछले कुछ वर्षों में विकसित राजनीतिक जंगलीपने के कंपीटिशन में राष्ट्र-राज्य, संस्कृति, लोकतंत्र की बरबादी की रिकॉर्ड छलांग है। मतदाता मानों बिकाऊ सस्ता माल! और रेट क्या? पांच किलो फ्री राशन, साल में दस या बारह हजार रुपए नकदी, दो-तीन सौ यूनिट फ्री बिजली जैसी गारंटियां! जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के विश्व शक्ति होने, दुनिया की तीसरी-चौथी इकोनॉमी बनने जैसे हुंकारे...

  • नेता बेवकूफ हैं या जनता?

    मोदी राज ने 140 करोड़ लोगों में हिंदुओं की उस आबादी को मूर्ख बनाया है जो धर्मपरायण और मूर्ति दर्शन, भजन, सत्संग, कथा-कहानी की पीढ़ीगत आस्था में जिंदगी गुजारती आई है! इन सबके दिल-दिमाग में अपने को पैठा कर वह कंपीटिशन पैदा कराया है, जिससे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल याकि गैर-भाजपाई पार्टियों की मजबूरी है जो वे भी लोगों को बेवकूफ बनाने, अंधविश्वासी बनाने के काम करें। तभी चुनाव अब बेवकूफ बनाने का उत्सव है। इस सप्ताह ‘पनौती’ जुमले का जैसा देशव्यापी हल्ला बना वह लोगों की समझ और अंधविश्वासों का पीक है। इससे क्या साबित है? नेता और मतदाता...

  • चुनाव मतलब लोगों को मूर्ख बनाना!

    भारत में अब सारे चुनाव आम लोगों को मूर्ख बनाने, उनको बरगलाने, निजी लाभ का लालच देने, उनकी आंखों पर पट्टी बांधने या उनकी आंखों में धूल झोंकने का उपक्रम और मौका है। पार्टियों के घोषणापत्र में भले कुछ भारी-भरकम बातें लिखी जाती हों लेकिन प्रचार में सिर्फ लोक लुभावन घोषणाएं होती हैं, जिन्हें गारंटी का नाम दिया जा रहा है। कहीं मोदी की गारंटी है तो कहीं कांग्रेस और राहुल की गारंटी है। उस गारंटी में यह है कि सरकार बनी तो हर वयस्क महिला को एक हजार से लेकर ढाई हजार रुपए तक महीना दिया जाएगा, स्कूल जाने...

  • सोचे, क्या यह मनुष्य विकास है?

    इसके अलावा चुनाव के समय जो नकदी बंटती है वह अलग है। अभी तक पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में करीब दो हजार करोड़ रुपए की नकदी, शराब और दूसरी चीजें पकड़ी गई हैं। जब दो हजार करोड़ रुपए नकद और सामान पकड़े गए हैं तो इससे 10 गुना जरूर बंटे होंगे। चुनाव के समय ऐसे लाभार्थियों का एक नया समूह बनता है। कुल मिला कर एक छोटा सा वर्ग है, जो अपनी सामाजिक नैतिकता और महत्वाकांक्षा के लिए काम , परिश्रम, पुरषार्थ करता है या काम करना चाहता है। लोग पूछते हैं कि भारत में महंगाई को लेकर लोगों...

  • पार्टियां ही नहीं, मीडिया की साख भी दांव पर लगी है

    भोपाल। चुनाव में कई साख दांव पर लगती हैं . कुछ प्रतिष्ठित प्रतिमान और सम्मान अधिक मजबूत हो जाते हैं .कई प्रतिष्ठान ध्वस्त हो जाते हैं . लेकिन इस बार यानी 2023 में विधानसभा चुनाव की स्थिति कुछ अलग है . पांच राज्यों में जहां चुनाव प्रक्रिया चल रही है या जहां केवल परिणाम शेष हैं इस बार मीडिया की साख भी दांव पर लगी है . पहले भी चुनावी रस्साकशी में पार्टियों के साथ साथ मीडिया भी इस या उस ओर के लिए जोश दिलवाने में शामिल हो जाता था. ऐसे उदाहरण अपवाद होते थे,कम होते थे ,कहीं कहीं...

  • लोकसभा चुनाव के लिए मुद्दों की तलाश

    यह सिर्फ कहने की बात नहीं है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव देश की राजनीति को दिशा देने वाले होंगे और इनसे पता चलेगा कि अगला लोकसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा। यह आमतौर पर हर चुनाव के बारे में कहा जाता है लेकिन इस बार पांच राज्यों के चुनाव का मामला थोड़ा अलग है। इन पांचों राज्यों में उन सारे दांव-पेंच की परीक्षा होने वाली है, जिनके दम पर लोकसभा का अगला चुनाव लड़ा जाना है। लोकसभा चुनाव में आजमाए जाने वाले तमाम हथियारों को इन चुनावों में धार दिया जा रहा है। चाहे हिंदुत्व के मुद्दे...

  • जीत हार जो भी हो मोदीजी की होगी

    भाजपा और उसका समर्थक मीडिया पहले से ही कहानी बनाने लगा है। ताकि 2024के चुनाव में फ्रेश मोदी जी को पेश किया जा सके। मोदी जी और मीडिया को अभी भी यह भरोसा है कि नरेटिव, परसपेक्शन ( कहानी, छवि ) ही असली चीज है।और सच्चाई कोई पढ़ना नहीं चाहता। मोदी जी का कद बहुत बड़ा है और विधानसभा चुनाव बहुत छोटे हैं इसलिए इसके नतीजों से मोदी जी के प्रभाव का आकलन नहीं हो सकता।...अच्छी रणनीति है! बड़ा खिलाड़ी बड़ा मैच ही जीतेगा। लेकिन वे यह भूल गए कि दूसरा भी बड़ा नहीं बहुत बड़ा खिलाड़ी बन चुका है।...

  • शिवराज और वसुंधरा दोनों पर अटकलें

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में चुनाव के बाद फैसला किया जाएगा। उनसे पूछा गया था कि क्या भाजपा ने इन दोनों का विकल्प खोज लिया है। इस पर उन्होंने कहा था कि दोनों नेता अपने अपने राज्य में खूब मेहनत कर रहे हैं और इनके बारे में फैसला चुनाव के बाद किया जाएगा। इन दोनों के साथ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का भी नाम जोड़ा जा सकता है। ये तीनों एक साथ 2003 में...

  • भाजपा के सांसद उम्मीदवारों की मुश्किल

    भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में अनेक सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा है। पार्टी ने यह सोच कर सांसदों की टिकट दी थी कि वे खुद तो जीतेंगे ही साथ ही अपने लोकसभा क्षेत्र की दूसरी सीटों पर भी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाएंगे। लेकिन कई सांसदों की सीट पर भाजपा का हिसाब किताब गड़बड़ाया है। इसके अलावा कुछ सांसद उम्मीदवारों के साथ ऐसा संयोग भी हुआ कि वे गलत कारणों से खबरों में रहे। ग्वालियर-चम्बल की दिमनी सीट से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से...

  • तीन राज्यों का चुनाव हुआ दिलचस्प

    पहले लग रहा था कि पहले की तरह इस बार भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव आमने सामने के होंगे। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा बनाम कांग्रे का मुकाबला होग, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति और कांग्रेस की लड़ाई होगी और मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट का मुकाबला जोराम पीपुल्स मूवमेंट से होगा। राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो भाजपा और कांग्रेस की लड़ाई आमने सामने होती दिख रही है और ऐसा लग रहा है कि जो भी जनादेश होगा वह बहुत स्पष्ट होगा। यानी जीतने वाले को ऐसा बहुमत मिलेगा कि वे...

  • आदिवासी वोट के लिए मोदी की मेहनत

    ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों के चुनाव प्रचार का एक कार्यक्रम झारखंड में भी कर रहे हैं। इस साल झारखंड दिवस यानी 15 नंवबर को वे जनजातीय गौरव दिवस झारखंड में मना रहे हैं। ध्यान रहे महान स्वतंत्रता सेनानी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को होती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री खूंटी स्थित उनके गांव उलिहातू जा रहे हैं। वे देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो बिरसा मुंडा के जन्मस्थल पर जा रहे हैं। कुछ समय पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी उनके गांव गई थीं। पांच राज्यों के चुनाव...

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