मोदी जी अंदर से घबराए हुए हैं। मिजोरम गए नहीं। साढ़े नौ साल में यह पहला चुनाव है जब प्रधानमंत्री किसीचुनाव वाले राज्य में भाषण देने नहीं गए हों। विधानसभा तो छोड़िए मोदी जीतो नगर निगम और पालिकाओं के चुनाव में भी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन इधरहिन्दी बेल्ट के तीनों राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश केचुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं। तीनों राज्यों का भाजपा काकोई स्थानीय नेता पिक्चर में नहीं है।तो साख तो प्रधानमंत्री की दांव पर लगी है।
मिजरोम में पूरा और छत्तीसगढ़ में पहले दौर का मतदान होने के साथ ही मौसमबदलने की सुगबुगाहट होने लगी है। इस नवंबर महीने में पांच राज्यों केविधानसभा चुनाव हो जाएंगे। बस नतीजे अगले महीने आएंगे। इसी तरह इनविधानसभा चुनावों के नतीजों के आधार पर अगले साल असली मुकाबला हो जाएगा।लोकसभा चुनाव। यानि फाइनल।
और यह फाइनल भी ऐसा है कि पहले टुर्नामेंटों में रनिंग शिल्ड हुआ करतीथी। अगर कोई लगातार तीन बार जीत ले तो फिर शिल्ड उसकी हो जाती थी। हमेशाके लिए। अब टुर्नामेंटों में वह नियम लागू होता है कि नहीं पता नहीं मगरराजनीति में लागू होने वाला है। अगर प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार भी लोकसभा जीत गए तो राजनीति उनकी होजाएगी। हमेशा के लिए।
और यह जीत लोकसभा की इस पर निर्भर करती है कि अभी हो रहे विधानसभाचुनावों में क्या नतीजे आते हैं। अगर कांग्रेस जीत गई। पांच में से चारराज्य या तीन राज्य भी तो लोकसभा भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगा। भाजपाडरी हुई है। इसीलिए बीच चुनाव में छापों का खेल जारी है। अभी छत्तीसगढ़में प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से निकल गया कि हमारे साथी ईडी और सीबीआई! जानते तो सब हैं मगर खुद प्रधानमंत्री के मुंह से यह निकलना बहुत बड़ीबात है। मतलब अब कोई दिखावे का लिहाज, नियम, शर्म भी नहीं बची। तो समझलीजिए की तीसरी बार मोदी जी के आने के बाद क्या होगा!
अभी छत्तीसगढ़ में ही दुर्ग में जहां मंगलवार को मतदान हुआ प्रधानमंत्रीने एक बड़ी घोषणा कर दी। आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते हुए। अगले पांचसाल जिसमें वे रहेंगे या नहीं पता नहीं पांच किलो अनाज और मिलता रहेगा।चुनाव घोषित हो जाने के बाद मुख्यमंत्री एक चपरासी को तो मिठाई का डिब्बादे नहीं सकता मगर प्रधानमंत्री जिन पर कोई नियम लागू नहीं होता अस्सीकरोड़ लोगों के लिए चुनाव वाले राज्य से घोषणा कर देते हैं।
लेकिन इस घोषणा का असली कारण समझिए! मोदी जी अंदर से घबराए हुए हैं।मिजोरम गए नहीं। साढ़े नौ साल में यह पहला चुनाव है जब प्रधानमंत्री किसीचुनाव वाले राज्य में भाषण देने नहीं गए हों। विधानसभा तो छोड़िए मोदी जीतो नगर निगम और पालिकाओं के चुनाव में भी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन इधरहिन्दी बेल्ट के तीनों राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश केचुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं। तीनों राज्यों का भाजपा काकोई स्थानीय नेता पिक्चर में नहीं है।
तो साख तो प्रधानमंत्री की दांव पर लगी है। इसलिए उन्होंने चुनाव के बीचमें पांच किलो अनाज पांच साल और की घोषणा की। मगर इसका भी असर होता नहींदिख रहा है। लोग कहने लगे हैं कि अगले पांच साल भी बस पांच किलो ही! औरआगे भी क्या केवल मुफ्त अनाज से ही काम चलाना पड़ेगा? कोई काम नहीं दियाजाएगा?
लोग रोजगार चाहते हैं। और महंगाई पर अकुंश। बाकी तो वे अपने आप कर लेंगे।मगर काम के बदले मुफ्त अनाज और वह भी केवल पांच किलो अब लोगों को स्वीकारनहीं। कोरोना में जब लाकडाउन ने आदमी को तोड़ दिया था तब पांच किलो उसनेस्वीकार लिया मगर अब वह काम चाहता है। उसके बदले मुफ्त अनाज नहीं। वह यहसमझ गया है कि मुफ्त अनाज देकर काम के उसके अधिकार को दबाया जा रहा है। तो देखते हैं ये पांच किलो का दांव और अभी तो चुनाव शुरु हुआ है बाकी कईपैंतरे अभी आजमाए जाएंगे कितने कामयाब होते है या राहुल का आत्मविश्वासकामयाब होता है।
जी हां! राहुल गांधी इस समय भारी आत्मविश्वास में हैं। इतने कि जहां बीचचुनाव में मोदी जी घोषणाएं करने में लगे हुए हैं वहीं राहुल तीन दिन केलिए उपर पहाड़ों पर बाबा केदारनाथ के पास चले गए। यह आत्म विश्वास ही हैकि वे वहां उपर 11 हजार 7 सौ फीट की उंचाई पर दर्शन कर रहे हैं। लोगों कोचुपचाप लंगर खिला रहे हैं, चाय सेवा कर रहे हैं, आदि शंकराचार्य कोप्रणाम कर रहे हैं और असर यहां मैदानी इलाकों में हो रहा है। भाजपा सेलेकर मीडिया तक चिंतित है कि राहुल वहां क्यों गए? कभी कभी शांत मैसेज बहुत दूर तक पहुंचता है। और इस समय वही हो रहा है।राहुल पहाड़ से पांचों राज्यों के चुनाव में मैसेज दे रहे हैं। यहीआत्मविश्वास है।
दरअसल यह चुनाव कांग्रेस की असली परीक्षा है। अगर कांग्रेस जीत गई तोपिछले कुछ दिनों से जो इन्डिया गठबंधन टूटने छिटकने जैसा लग रहा था वहवापस फेविकोल के मजबूत जोड़ की तरह जुड़ जाएगा। और एक बात आप को बता देंकि अगर कांग्रेस तेलंगाना भी जीत गई तो केसीआर भी लोकसभा के लिए इन्डियागठबंधन में आ जाएंगे। क्योंकि लोकसभा का मतलब वे भी समझते हैं कि तीसरीबार मोदी जी के जीतने का मतलब फिर उनकी राजनीति खत्म होना है। कांग्रेसके साथ तो लड़ते भिड़ते सभी क्षेत्रीय दल 75 साल से बने रहे हैं। जीते भीहैं, आगे भी बढ़े हैं। मगर मोदी जी ने तो आने के बाद से उन क्षेत्रीयदलों को भी निपटाना शुरु कर दिया जिन्हें भाजपा के नेचुरल सहयोगी कहाजाता था। शिवसेना। और फिर अकाली दल। बाकी तो केसीआर को सरे राह नंगा करदिया यह कहकर कि मेरे पास आए थे एनडीए में शामिल होने मैंने मना कर दिया।
अभी नीतीश कुमार भी कुछ बोल गए। बिना सोचे कि अगर कांग्रेस ये विधानसभानहीं लड़ेगी तो क्या इन्डिया लोकसभा लड़ने काबिल रहेगा? पांच राज्यों कीविधानसभाओं से ही इन्डिया में जान आएगी। ये विधानसभा तो केवल कांग्रेस केही हैं। इन्डिया गठबंधन के बाकी दलों का तो इन चुनावों में कुछ भी नहींहै। हाजिरी लगाने के लिए वे लड़ रहे हैं तो लड़ें मगर इसे मुद्दा नहींबनाएं।
अखिलेश यादव तो कांग्रेस और भाजपा को एक ही तराजू में तौलने लगे। येभूलकर कि उनके मुख्यमंत्री से हटने के बाद मुख्यमंत्री निवास गंगाजल सेधुलवाने, उन्हें टोंटी चोर जैसे अपमानजनक संबोधन देने, यादवों की गिनतीजातिगत जनगणना में ज्यादा बताई है जैसी बातें और काम कांग्रेस ने कभीनहीं किया। मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने अखिलेश वखिलेश कहकर बहुत गलत कामकिया मगर उन्हें ये याद रखना चाहिए कि जैसे सपा के नेता वे हैं वैसे हीकांग्रेस के राहुल। कमलनाथ नहीं! सपा के कई लोग राहुल के खिलाफ इससे भीखराब भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि राहुल सपाके खिलाफ बोलने लगें।
केजरीवाल भी उसी मानसिकता में भाजपा के साथ कांग्रेस को जोड़ रहे हैं। वेभी यह भूल जाते हैं कि 2012 से 2014 तक उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह, सोनिया गांधी, राहुल के खिलाफ क्या क्या नहीं बोला। नहीं किया। मगरक्या कांग्रेस ने कभी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की? आज उनके तीन बड़ेनेता जेल में हैं। और खुद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी है। तो क्याकांग्रेस और भाजपा में कोई फर्क नहीं है?
मगर ये सब दल, नेता कांग्रेस के विधानसभा जीतने के साथ ही फिर वह भाषाबोलेंगे जो ममता बनर्जी ने इन्डिया गठबंधन की बंगलुरू बैठक में कही थी -हमारे फेवरेट राहुल! जीत ही सारी शिकायतों की दवा है। कर्नाटक की तरह कांग्रेस इन पांचराज्यों के चुनाव भी बहुत अच्छी तरह लड़ रही है। चुनाव की तरह। राहुलप्रियंका और अध्यक्ष खरगे जी तीनों जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। कर्नाटक में भी इन्हीं तीनों ने करिश्मा कर दिखाया था। और अब कांग्रेस के साथइन्डिया गठबंधन भी इन्हीं तीनों केद्वारा करिश्मा फिर से दोहराए जाने कीउम्मीद कर रहा है।