अनिल चतुर्वेदी
जैसे अपने पाप धोने के लिए गंगा में डुबकी तक लगा देते हैं वैसे ही राजनीति राजनीति चमकाने या फिर पाप धोने के लिए मोदी की भाजपा में शामिल हो लेते हैं ।
पंजाब में मात्र दो विधानसभा सीटें जीत पाने के बाद भी भाजपा उतनी ही सक्रिय दिख रही है जितनी चुनावों से पहले।
भाजपा का गढ़ रहे राजेंद्र नगर विधानसभा का अगले महीने होने वाला उप- चुनाव भाजपा जीत पाएगी या फिर बाज़ी फिर आप के ही हाथ लगती है इसका तो इंतज़ार बाक़ी है।
भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री तो पंजाब के बने हैं पर उनके कार्यकाल की मियाद को लेकर दिल्ली में क़यास लगने शुरू हो गए हैं।
भाजपा का दामन क्या थामा कि वे खुद को राजनीति में खुदा समझने लगे हैं। किसी भी विरोधी पार्टी के नेता के ख़िलाफ़ वे बेबाक़ बयान देने से चूकते नहीं।
कांग्रेसियों ने चिंता कितनी जताई होगी यह खबर तो बाहर तक निकली नहीं पर कांग्रेसियों अपने नेताओं के भविष्य को लेकर जो चिंता जताई वो ज़रूर जगज़ाहिर हो गई।
भाजपा में शामिल हुए जाखड की मार्फ़त भाजपा पंजाब में जहां हिंदू वोट साधना चाहती है वहीं वह पंजाब के जाट वोटों पर जाखड के जरिए असर बनाए रखना चाहती है।
जैसे ही पार्टी ने दुर्गेश पाठक को प्रभारी बनाने की घोषणा की तो चुनाव लड़ने की उम्मीद लगाए नेता और उनके समर्थक न सिर्फ़ आपा खो बैठे
मीनाक्षी लेखी का कि उन्होंने गुटबाज़ी की शिकार हुई अपनी टीम को इससे उबरने और नया जोश भरने के लिए बुजुर्गों की आड़ लेकर उनके लिए हेल्थ कैंप लगाया।
हरियाणा से कौन बड़ा कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल होने को बेताब है दिल्ली के कांग्रेसियों में आजकल यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
जाखड पार्टी के लिए कितने महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं इसका फ़ैसला तो शिविर के समापन के बाद ही संभव होगा पर सिद्धू पार्टी के लिए कितने अहम साबित हो सकते इस पर भी पार्टी विचार करती दिख रही है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान पंजाब में शिक्षकों सुधार की चिंता में अपने आका और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की क्लास लेने क्या आए कि विरोधियों ने उनके लत्ते फाड़ना शुरू कर दिया।
चर्चा है कि दिल्ली नगर निगम चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वालें को अब पहले हिमाचल चुनाव के लिए भेजा जाएगा।
आपदा में भी अवसर तलाशना कोई कथित नेताओं से सीखे, भले इसमें उसे सफलता मिले या नहीं। पिछले दिल्ली के आर.के. पुरम इलाक़े में कुछ ऐसा ही हुआ।
केजरीवाल के इस खेल से क्या कांग्रेस और क्या अकाली और क्या भाजपा सभी चारों खाने चित हो लिए। और अब बारी हिमाचल की है।