nayaindia Telangana Northeast election तेलंगाना, पूर्वोत्तर में इन मुद्दों से नुकसान

तेलंगाना, पूर्वोत्तर में इन मुद्दों से नुकसान

अगर इंडिया की जगह भारत का मुद्दा बनता है, सनातन की रक्षा का मुद्दा बनता है और हिंदी भाषा की प्रमुखता होती है तो तेलंगाना और मिजोरम में भाजपा को दिक्कत होगी। भाजपा के चुनाव रणनीतिकारों को इसका अंदाजा है कि तेलंगाना में तेलुगू प्राइड का मुद्दा बनेगा तो मिजोरम में स्थानीय आदिवासी व ईसाई आबादी के बीच धर्म व भाषा दोनों का मुद्दा बनेगा। लेकिन हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों की राजनीति पर भाजपा तेलंगाना और मिजोरम को कुर्बान कर सकती है। वैसे भी तेलंगाना में तमाम प्रयास के बाद भी भाजपा कोई खास असर नहीं छोड़ पाई है। उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीती थीं लेकिन उससे पहले विधानसभा में उसको सिर्फ तीन सीट मिली थी। भाजपा ने कुछ दिन तक तेलंगाना में मेहनत की लेकिन अचानक अपना तामझाम समेट लिया। माना जा रहा है कि कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा ने वहां सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति पर ही दांव लगाया है। भाजपा का मकसद है कि किसी तरह से कांग्रेस न जीते। अगर भाजपा नहीं रोक पाती है तो बीआरएस ही कांग्रेस को हरा दे, इस योजना पर वहां काम हो रहा है।

अभी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन संभव है कि अंदरखाने भाजपा और बीआरएस के बीच सीटों को लेकर एडजस्टमेंट हो। चंद्रशेखर राव भी चाहते हैं कि कांग्रेस कमजोर रहे। इसके लिए वे भी भाजपा को मजबूत करने वाली राजनीति कर सकते हैं। 16-17 सितंबर को हैदराबाद में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक होगी और एक बड़ी रैली होगी, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी शामिल होंगे। 17 सितंबर को ही अमित शाह भी रैली करेंगे। अमित शाह के भाषण से भाजपा की रणनीति का कुछ खुलासा होगा। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा तेलंगाना की ज्यादा परवाह नहीं कर रही है। वहां जी-20, सनातन, हिंदी, भारत किसी का बड़ा मुद्दा नहीं बन पाएगा। उलटे इन मुद्दों पर नुकसान हो सकता है।

इसी तरह मिजोरम में भी भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है। 10-11 लाख की आबादी वाले मिजोरम में विधानसभा 40 सीटों की है, जिसमें भाजपा ने पिछली बार एक सीट जीती थी। पिछले कुछ दिनों से मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा की वजह से मिजोरम बहुत प्रभावित हुआ है। मणिपुर से बड़ी संख्या में लोग मिजोरम चले गए थे। वहां कुकी आदिवासियों के समर्थन में एक बड़ा जुलूस भी निकला था। गौरतलब है कि मणिपुर में कुकी आदिवासी हैं, जो अल्पसंख्यक हैं। इनमें से काफी कुकी आदिवासी ईसाई हो गए हैं। मैती बहुसंख्यक हिंदू हैं, जिसके 30 विधायक हैं और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी मैती हैं। कुकी आदिवासियों की जड़ें मिजो आबादी से भी जुड़ती हैं। ऊपर से मिजोरम में 87 फीसदी आबादी ईसाई है। इसलिए भी भाजपा वहां बहुत ध्यान नहीं दे रही है। उसको पता है कि हिंदी पट्टी या देश के बड़े हिस्से के लिए भाजपा ने जो मुद्दे उठाए हैं और जिसका नैरेटिव बनवाया है वह न तो तेलंगाना में चलना है और न मिजोरम में। उलटे इन मुद्दों से नुकसान का अंदाजा भी भाजपा को होगा। लेकिन उसकी नजर बड़ी तस्वीर पर है। लोकसभा चुनाव में भी करीब चार सौ सीटों पर उसके उठाए मुद्दों का असर होगा। इसलिए वह दक्षिण भारत की 131 और पूर्वोत्तर की 25 सीटों की कुर्बानी का दांव चल सकती है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें