nayaindia white paper black paper in parliament सफेद झूठ/काला झूठ!

सफेद झूठ/काला झूठ!

भारत में इन दिनों वह सब है जिससे विभाजन बने। और इसके लिए झूठ का सर्वाधिक उपयोग है। तभी एक दूसरे को झूठा बनाने, बताने की तू-तू, मैं-मैं का सैलाब जनता से संसद सभी तरफपसरा हुआ है। समाज हो, धर्म हो, आर्थिकी हो और राजनीति सर्वत्र अब झूठमेव जयते है। उस नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार निश्चित ही इतिहास बना रही है। कोई सामान्य बात नहीं जो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार केंद्र सरकार का पूर्ववर्ती सरकार पर एक श्वेत पत्र जारी हुआ। यह साबित करने के लिए कि कांग्रेस की सरकार आर्थिकी की सत्यानाशी थी जबकि नरेंद्र मोदी सरकार ने अमृतकाल से, विकसित भारत सेस्वर्णयुग की नींव बना डाली!

वाह! क्या बात है। एक व्हाईट पेपर से वैश्विक साख में प्रमाणित अर्थशास्त्री डा मनमोहनसिंह और उनके वित्त मंत्री प्रणब मुकर्जी (जिन्हे मोदी सरकार ने भारत रत्न से नवाजा है!) और पी चिंदबरम को भारतीय अर्थव्यवस्था की कुव्यवस्था का खलनायक बना डाला वहीं नरेंद्र मोदी और उनके वित्तमंत्री रहे दिवंगत जेतली व निर्मला सीतारमणसे विकसित आर्थिकी के पिरामिड़ बने है!

59 पन्नों के संसद में पेश किए गए सरकारी व्हाईट पेपर में 2014से पहले के उन कोयला, २जी स्पेट्रम, कॉमनवेल्थ घोटालो का जिक्र है जिसमें मौजूदा सरकार की जांचों, हल्ले के बावजूद न किसी घोटाले में किसी मंत्री-उद्योगपति से एक रूपया बरामद हुआ और न अदालतों में नेता-कारोबारी नेक्सस प्रमाणित या नेता अपराधी करार। इस व्हाईट पेपर की माने तो डा मनमोहनसिंह-प्रणब मुकर्जी टीम से उनके दस साला राज में आर्थिक कुव्यवस्था बनीतो नीतिगत अंपंगता भी थी।

सवाल है2014 में ‘अच्छे दिनों’ हर एकाउंट में पंद्रह लाख रू डलवाने के झांसों से शुरू मोदी सरकार को भला दस साल बाद 2024 में विकसित भारत, स्वर्णिम काल बना लेने के बाद भी डा मनमोहनसिंह-प्रणब मुकर्जी-पी चिदंबरम के कार्यकाल पर कालिख पोतने की जरूरत क्यों हुई? इतना ही नहीं इसके लिए संसद सत्र के आखिरी दिन चुने गए। खूब ढ़िढोरा पीटा जा रहा है। वजहचुनावों की करीबि है। और लोगों को उल्लू बना कर चुनाव जीतना1952 से भारत के नेताओं का बीजमंत्र है। सत्ता में दस साल रहने के बाद भी कांग्रेस को कोस-कोस कर गालियां देना सत्तापक्ष के लिए जरूरी है ताकि जनता अपनी आर्थिक बदहाली में सरकार को दोषी मानने के बजाय कांग्रेस के विलेन होने में खोई रहे। चुनाव में लोगों की माली दशा, मंहगाई, बेरोजगारी, भूख के तमाम प्रकारों से खतरे है। इसे बूझते हुए पहले यह झूठ प्रसारित हुआ कि दस सालों में पच्चीस करोंडो लोगों की गरीबी खत्म कर दी गई है और फिर लोकसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिनों में सफेद झूठों का ढ़ंका है।

सोचे, जरा आर्थिकी कुव्यवस्था के आरोप पर? आर्थिक कुव्यवस्था के रिकार्ड में भला मोदी राज की नोटबंदी से बड़ा आजाद भारत के इतिहास में कोई दूसरा प्रतिमान है? ऐसे ही नीतिगत अंपगता पर गौर करें तो शुरूआती भूमि अधिग्रहण बिल से लेकर चीनी सेना की भारतीय सीमा में घुसपैठ, कब्जे के गतिरोध, कृषि सुधारों के तीन बिल, सीएए बना कर उसकों लटकाएं रखने से लेकर हालिया मणिपुर माले में जैसी नीतिगत अपंगता क्या मामूली रिकार्ड है?

सो हकीकत को कैसे ढका जाए? पिछली सरकार को और सफेद झूठों में डुबो कर!

जाहिर है भारत के राज धर्म में झूठ का रंग जहां सफेद है। वही विपक्ष के झूठ का रंग है काला!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें